Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नमि प्रव्रज्या - द्वितीय प्रश्न-जलते हुए अंतःपुर को क्यों नहीं देखते? १३७ ******************************AAAAAAAAAAAAAAAAAAAkkkkkkkkkkkkk ___ भावार्थ - हे विप्र! वह मनोरम नाम वाला वृक्ष जब वायु से उखड़ गया तब उस पर निवास करने वाले ये प्रक्षी दुःखी, अशरण और पीड़ित होकर आक्रन्दन कर रहे हैं।
विवेचन - जिस प्रकार वृक्ष के गिर जाने पर, पक्षी अपने स्वार्थ का नाश हो जाने के कारण उस वृक्ष के लिए रोते चिल्लाते हैं, परन्तु वृक्ष को उनके रोने में कारण नहीं बनाया जा सकता और न उसे इसके लिए दोषी ही ठहराया जा सकता है, इसी प्रकार मेरे दीक्षा लेने के लिए घर से निकलने पर मिथिला के लोग अपने स्वार्थ के नष्ट हो जाने के कारण विलाप करते हैं। वास्तव में इनका विलाप अपने स्वार्थ के लिए हैं, मेरे लिए नहीं। अतएव इन कोलाहल पूर्ण शब्दों के लिए मुझे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
देवेन्द्र द्वारा प्रस्तुति एयमढे णिसामित्ता, हेउकारण चोइओ। तओ णमिं रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥११॥ कठिन शब्दार्थ - णमि रायरिसिं - नमि राजर्षि से, देविंदो - देवेन्द्र।
भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा। द्वितीय प्रश्न - जलते हुए अंतःपुर को क्यों नहीं देखते?
एस अग्गी य वाऊ य, एयं डज्झइ मंदिरं।
भयवं अंतेउरं तेणं, कीस णं णावपेक्खह॥१२॥ · कठिन शब्दार्थ - एस - यह, अग्गी - अग्नि, वाऊ - वायु, उज्झइ - जल रहा है, मंदिरं - मन्दिर (राज भवन), अंतेउरं - अंतःपुर को, कीस णं - किस कारण से, ण - नहीं, अवपेक्खह - देखते।
भावार्थ - वायु से प्रेरित हुई यह अग्नि आपके इस भवन को जला रही है अतः हे भगवन्! आप अपने अंतःपुर की ओर क्यों नहीं देखते हैं?
नमिराजर्षि का उत्तर एयमटुं णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ णमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी॥१३॥
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