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नमि प्रव्रज्या
छठा प्रश्न- शत्रु राजाओं को जीतने विषयक
नमि राजर्षि का उत्तर
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एयमट्ठ णिसामित्ता, हेउकारणचोड़ओ ।
तओ णमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी ॥ २६ ॥
भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमी राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे ।
अस तु मणुस्सेहिं, मिच्छादंडो पउंजइ ।
अकारिणोऽत्थ बज्झंति, मुच्चइ कारओ जणो ॥ ३० ॥
कठिन शब्दार्थ - असई - अनेक बार, मणुस्सेहिं - मनुष्यों के द्वारा, मिच्छादंडो मिथ्या दण्ड का, पउंजइ - प्रयोग किया जाता है, अकारिणो अपराध न करने वाले, बज्झति - बांधे जाते हैं, अत्थ यहाँ (लोक में), मुच्चइ - छूट जाते हैं, कारओ अपराधी, जणो - जन ।
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भावार्थ - इस लोक में मनुष्यों से अनेक बार मिथ्या दंड का प्रयोग किया जाता है अर्थात् अज्ञानादि वश लोग निरपराधी को दण्ड देते हुए दिखाई देते हैं, अपराध न करने वाले निर्दोष व्यक्ति बांधे जाते हैं और अपराध करने वाला पुरुष छोड़ दिया जाता है।
छठा प्रश्न - शत्रु राजाओं को जीतने विषयक
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एयम णिसामित्ता, हेउकारणचोड़ओ ।
तओ मिं रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥३१॥
भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा ।
जे. केइ पत्थिवा तुझं, णाणमंति णराहिवा ।
वसे ते ठावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३२ ॥
कठिन शब्दार्थ - जे - जो, केइ
कोई,
राजा (पार्थिव),
नमस्कार नहीं करते, णराहिवा - नराधिप, वसे
वश में, ठावइत्ताणं - स्थापन करके ।
भावार्थ - हे नरेन्द्र ! जो कोई राजा तुम्हारी अधीनता स्वीकार कर तुम्हें नमन नहीं करते, उन्हें वश में करके, हे क्षत्रिय ! इसके बाद तुम प्रव्रज्या धारण करना ।
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