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उत्तराध्ययन सूत्र - नौवां अध्ययन
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कठिन शब्दार्थ - एयं - इस, अहं - अर्थ को, णिसामित्ता - सुन कर, हेउ - हेतु, कारण कारण, चोइओ प्रेरित किये हुए, देविंदं
देवेन्द्र को, इणं
इस प्रकार,
अब्बवी - कहा ।
भावार्थ शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे।
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विवेचन - 'हेडकारणचोइओ' - हेतु और कारण से प्रेरित । हेतु का लक्षण है - साध्य के अभाव में जिसका अभाव निश्चित हो। जैसे इन्द्र का वाक्य है- “तुम्हारा अभिनिष्क्रमण अनुचित है क्योंकि उसके कारण समूची नगरी में हृदयद्रावक कोलाहल हो रहा है।" इसमें पहला अंश प्रतिज्ञावचन (पक्ष) है जो साध्य है तथा दूसरा अंश है प्रतिज्ञावचन का हेतु, जो अभिनिष्क्रमण के अनौचित्य को सिद्ध करता है। इसी प्रकार कारण उसे कहते हैं - जिसके अभाव में कार्य की उत्पत्ति कथमपि संभव न हो, अर्थात् कार्य के संलग्न पूर्वक्षण में जो नियतरूप से विद्यमान हो। प्रस्तुत में इन्द्र ने कहा है- यदि तुम अभिनिष्क्रमण न करते तो इतना हृदयविदारक कोलाहल न होता। इस वाक्य में कोलाहल कार्य है और अभिनिष्क्रमण उसका कारण है (जो इन्द्र ने कहा)। इस हेतु और कारण से प्रेरित हुए थे - नमिराजर्षि । मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे ।
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पत्त पुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥ ६ ॥
कठिन शब्दार्थ - बेइए उद्यान में, वच्छे - वृक्ष, सीयच्छाए - शीतल छाया से युक्त, मणोरमे - मनोरम, पत्तपुप्फफलोवेए - पत्र, पुष्प और फलों से युक्त, बहुगुणे बहुत उपकार करने वाला।
भावार्थ - मिथिला नगरी के उद्यान में पत्र-पुष्प और फलों से युक्त शीतल छाया वाला, सदा बहुत से पक्षी आदि प्राणियों को बहुत ही लाभ पहुँचाने वाला, चित्त को प्रसन्न करने वाला - मनोरम नामक एक वृक्ष था ।
वाएण हीरमाणम्मि, बेइयम्मि मणोरमे ।
दुहिया असरणा अत्ता, एए कंदंति भो ! खगा ॥ १० ॥ कठिन शब्दार्थ - वारण वायु से, हीरमाणम्मि चैत्य के, दुहिया - दुःखी, असरणा शरण रहित, अत्ता खगा - पक्षी, कंदंति - क्रन्दन करते हैं।
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प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमी
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उखड़ जाने पर, चेड्यम्मि
आर्त (पीड़ित ), एए - ये,
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