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उत्तराध्ययन सूत्र - नौवां अध्ययन ************************************************************
भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ - प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमी राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे। .
सहं वसामो जीवामो, जेसिं मो णस्थि किंचणं।
मिहिलाए डज्झमाणीए, ण मे डज्झइ किंचणं॥१४॥ ... कठिन शब्दार्थ - सुहं. वसामो - सुख से रहता हूँ, जीवामो - जीता हूँ, मो - मेरा, णस्थि - नहीं, किंचणं - कुछ भी, डज्झमाणीए - जलने से।
भावार्थ - हे ब्राह्मण! इनमें हमारी कोई वस्तु नहीं हैं इसलिए मैं सुख पूर्वक रहता हूँ और सुखपूर्वक ही जीता हूँ। मिथिला नगरी के जल जाने पर मेरा कुछ भी नहीं जलता हैं। ।
विवेचन - आत्मा अकेला है। अकेला ही जन्म धारण करता है और अकेला ही मरता है। वस्तुतः अन्तःपुर आदि कुछ भी मेरा नहीं है और न मेरा इनमें ममत्व ही रहा हुआ है। इसलिए मिथिला नगरी के जलने पर मेरा कुछ भी नहीं जलता।' ___ नमि राजर्षि की सांसारिक पदार्थों में निर्ममत्व भाव की परीक्षा करने के लिए इन्द्र ने यह प्रश्न किया है, जिसका उपरोक्त उत्तर देकर नमि राजर्षि ने यह स्पष्ट कहा है कि इन सांसारिक पदार्थों में मेरा किचिंत्मात्र भी मोह और ममत्व नहीं है। __चत्तपुत्तकलत्तस्स, णिव्वावारस्स भिक्खुणो।
पियं ण विजइ किंचि, अप्पियं पि ण विजइ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - चत्तपुत्तकलत्तस्स - पुत्र, कला के त्यागी, णिव्वावारस्स - व्यापार रहित, भिक्खुणो - भिक्षु को, पियं - प्रिय, ण विजा . नहीं है, अप्पियं - अप्रिय। ___ भावार्थ - पुत्र और स्त्रियों का त्याग करने वाले, कृषि पशु पालन आदि सभी प्रकार के व्यापार से निवृत्त साधु के लिए न तो कोई वस्तु प्रिय है और न अप्रिय ही है अर्थात् भिक्षु का सभी वस्तुओं में समभाव रहता है।
बहुं खु मुणिणो भई, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वओ विप्पमुक्कस्स, एगंतमणुपस्सओ॥१६॥ .
कठिन शब्दार्थ - भई - भद्र (सुख), सव्वओ - सर्व प्रकार से, विप्पमुक्कस्स - विमुक्त-बंधनों से रहित, एगंतमणुपस्सओ - एकान्त देखने वाले - एकान्तदर्शी को। ___भावार्थ - सभी प्रकार के बाह्य और आभ्यंतर बन्धनों से मुक्त होकर 'मैं अकेला हूँ,
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