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नमि प्रव्रज्या - तीसरा प्रश्न-नगर की सुरक्षा की चिंता क्यों नहीं?
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मेरा कोई भी नहीं हैं। इस प्रकार एकत्व-भावना का, विचार करने वाले तथा भिक्षा से निर्वाह करने वाले गृहत्यागी साधु के लिए निश्चय ही बहुत कल्याण (सुख) है। तीसरा प्रश्न - नगर की सुरक्षा की चिंता क्यों नहीं?
एयमढें णिसामित्ता, हेउकारणचोडओ। तओ णमिं रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥१७॥
भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा।
पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि य। . उस्सूलग-सयग्घीओ, तओ गच्छसि खत्तिया॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - पागारं - प्राकार (कोट), कारइत्ताणं - करवा कर, गोपुरट्टालगाणिगोपुर (नगर द्वार) अट्टालिकाएं, उस्सूलग - कोट (दुर्ग) की खाई, सयग्घीओ - शतघ्नी शतमारक (तोप) आदि शस्त्र, खत्तिया - हे क्षत्रिय? . - भावार्थ - हे क्षत्रिय! प्राकार (कोट) और दरवाजे तथा अट्टालिका अर्थात् कोट पर युद्ध करने के लिए बुर्ज, कोट के चारों ओर खाई और सैकड़ों शत्रुओं का हनन करने वाली तोप आदि यंत्र करवा कर उसके बाद तुम दीक्षित होना।
नमि राजर्षि का उत्तर एयमटुं णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ णमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी॥१६॥
भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ प्रश्न सुन कर हेतु-और कारण से प्रेरित हुए नमी राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे।
सद्धं णगरं किच्चा, तव-संवर-मग्गलं।
खंति णिउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥२०॥ ... कठिन शब्दार्थ - सद्धं - श्रद्धा रूप, णगरं - नगर, तवसंवर - तप और संवर को, अग्गलं - अर्गला, किच्चा - बना कर, खंति - क्षमा को, णिउणपागारं - निपुण प्राकार, तिगुत्त - तीन गुप्ति से, दुप्पधंसयं - दुष्प्रध्वंस्य - अजेय।
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