Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
८८
उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन Akkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
कठिन शब्दार्थ - संवुडे - संवृत - आम्रवद्वार निरोधक, दुण्ह - दोनों में से, अण्णयरेएक, सव्वदुक्खप्पहीणे - सभी दुःखों से रहित मुक्त, महिहिए - महर्द्धिक-महाऋद्धिशाली।
भावार्थ - जो संवर वाला साधु है वह मनुष्यायु के समाप्त होने पर दो में से एक होता है या तो सभी दुःखों का नाश करने वाला सिद्ध होता है अथवा महाऋद्धिशाली देव होता है।
उत्तराई विमोहाई, जुइमंताणुपुव्वसो। समाइण्णाई जक्खेहिं, आवासाइं जसंसिणो॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - उत्तराई - उपरिवर्ती-उत्तरोत्तर ऊपर रहे हुए, विमोहाइं - मोह रहित, जुइमंता - धुति (कान्ति) मान्, अणुपुव्वसो - क्रमशः, समाइण्णाई - परिव्याप्त-भरे हुए, जक्खेहिं - देवों से, आवासाई - आवास, जसंसिणो - यशस्वी।
भावार्थ - उन देवों के आवास उत्तरोत्तर ऊपर रहे हुए हैं क्रमशः मोह की न्यूनता वाले एवं मिथ्यादर्शनादि से रहित विशेष द्युति (प्रभा) वाले देवों से भरे हुए हैं, वे देव यशस्वी होते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं में स्पष्ट किया है कि सकाम मृत्यु प्राप्त जीव के कुछ कर्म शेष रह जाने के कारण मोक्ष के बदले देवलोक की उत्कृष्ट ऋद्धि की प्राप्ति होती है। यहाँ देवों के प्रासाद और उनमें देवों के निवास की संख्या का वर्णन किया गया है।
दीहाउया इहिमंता, समिद्धा कामरूविणो। अहुणोववण्णसंकासा, भुजो अच्चिमालिप्पभा॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - दीहाउया - दीर्घायु वाले, इथिमंता - ऋद्धि वाले, समिद्धा - समृद्धि वाले, कामरूविणो - इच्छानुकूल वैक्रिय करने वाले, अहुणोववण्णसंकासा - तत्काल उत्पन्न हुए देव के समान, भुजो - अनेक, अच्चिमालि - सूर्यों की तरह, प्पभा - प्रभा वाले।
भावार्थ - वे देव दीर्घ आयु वाले, ऋद्धि संपन्न, अत्यंत दीप्त, इच्छानुसार रूप बनाने वाले नवीन उत्पन्न हुए देव के समान अर्थात् जन्म से लेकर अन्त समय तक एक समान वर्ण, बल, धुति आदि वाले और बहुत से सूर्यों जैसी दीप्ति वाले होते हैं।
विवेचन - जो जीव पंडित मरण को प्राप्त होकर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं उनकी उत्कृष्ट आयु ३३ सागरोपम की होती है। वे अनेक ऋद्धियों से युक्त, अति तेजस्वी और इच्छानुसार वैक्रिय शक्ति से सम्पन्न (युक्त) होते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org