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औरभ्रीय - काकिणी और आम्रफल का उदाहरण
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कठिन शब्दार्थ - परिक्खीणे - परिक्षय होने पर, चुया - छूटने पर, देहा - शरीर के, विहिंसगा - नाना प्रकार की हिंसा करने वाले, आसुरीयं - आसुरीय (नरक), दिसं - दिशा .. को, अवसा - कर्म के वश होकर, तमं - अंधकार युक्त। ___ भावार्थ - इसके बाद आयु के क्षीण हो जाने पर हिंसा करने वाले अज्ञानी जीव शरीर . छोड़ कर कर्म के वश हो अन्धकार वाली आसुरी दिशा अर्थात् नरक गति में जाते हैं। .
विवेचन - हिंसा आदि रौद्र कर्मों का आचरण करने वाले प्राणी कर्म के आधीन होकर नरक गति को प्राप्त होते हैं। . बकरे के दृष्टान्त का उल्लेख करने के बाद अब शास्त्रकार काकिणी और आम्रफल के दृष्टान्त का निरूपण करते हैं। यथा -
२-३. काकिणी और आम्रफल का उदाहरण जहा कागिणीए हेडं, सहस्सं हारए णरो। अपत्थं अंबगं भोच्चा, राया रज्जं तु हारए॥११॥
कठिन शब्दार्थ - कागिणिए - काकिणी के, हेउं - हेतु, सहस्सं - हजार मोहर को, हारए - हार देता है, अपत्थं - कुपथ्य, अंबगं - आम्रफल को, भोच्चा - खा करके, रायाराजा, रजं - राज्य को। ___ भावार्थ - जिस प्रकार कोई मनुष्य एक काकिणी (एक रूपये के अस्सीवें भाग को 'काकिणी' कहते हैं) के लिए हजार रुपयों को खो देता है और कोई राजा रोग से मुक्त हो कर अपथ्य आम खा कर मर जाता है फलस्वरूप राज्य ही खो देता है।
विवेचन - इस गाथा में निम्न दो दृष्टान्तों का वर्णन किया गया है - - १. काकिणी का दृष्टान्त - एक व्यक्ति ने बड़ी कठिनाई से श्रम करके एक हजार कार्षापण (प्राचीन काल का एक छोटा सिक्का जो बीस काकिणी के बराबर होता था) इकट्ठे किये। वह उन्हें लेकर अपने गांव लौट रहा था। मार्ग के किसी गांव में अपने भोजन की व्यवस्था के लिए उसने अतिरिक्त काकिणियों में से कुछ की भोजन सामग्री खरीदी। वहाँ वह एक काकिणी भूल कर आगे चला गया।
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