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उत्तराध्ययन सूत्र - सातवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★tttttttttttt*
पदार्थों के संग्रह एवं त्याग का फल आसणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया। दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहु संचिणिया रयं॥॥ तओ कम्मगुरू जंतू, पच्चुप्पण्णपरायणे। अयव्व आगयाएसे, मरणंतम्मि सोयइ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - आसणं - आसन, सयणं - शयन-शय्या, जाणं - यान-सवारी आदि, वित्तं - धन, कामे - काम भोगों को, भुंजिया - भोग करके, दुस्साहडं - दुःख से एकत्रित किए हुए, हिच्चा - त्याग करके, संचिणिया - एकत्रित करके, रयं - कर्म रज को, कम्मगुरू - कर्म से भारी जंतु-जीव, पच्चुप्पण्ण - वर्तमान में, परायणे - तत्पर, अयव्व - बकरे की तरह, आगयाएसे - मेहमान के आने पर, सोयइ - शोक करता है।
. भावार्थ - आसन, शय्या, वाहन, धन और पांच इन्द्रिय के विषय भोगों को भोग कर दुःख से इकट्ठे किये हुए धन को छोड़ कर और बहुत कर्मरज को एकत्रित कर के इसके पश्चात् वर्तमान काल का ही विचार करने वाला वह कर्मों से भारी बना हुआ प्राणी पाहुने के आने पर बकरे के समान मृत्यु के समीप आने पर शोक करता है।
विवेचन - आठवीं और नवमी गाथा में सांसारिक पदार्थों के भोग और उपभोगों की चर्चा के साथ, कष्ट से उपार्जन किए धन आदि का अंत में त्याग करके परलोक में गमन करने तथा अपने जीवनकाल में कर्मरज का संचय करने का उल्लेख किया गया है।
कर्ममल के संचय से भारी होने वाली आत्मा, वर्तमान काल के सुखों में निमग्न होकर अपने वास्तविक कर्त्तव्य को बिल्कुल भूल जाता है परन्तु मृत्यु के समीप आने पर उसकी वही दशा होती है जो मेहमान के आने पर उस हृष्ट पुष्ट बकरे की होती है।
___ जीव की भावी गति तओ आउपरिक्खीणे, चुयादेहा विहिंसगा। आसुरियं दिसं बाला, गच्छंति अवसा तमं॥१०॥
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