Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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णमिपवज्जा णामं णवमं अज्झयणं नमि प्रवज्या नामक नौवाँ अध्ययन
उत्थानिका आठवें अध्ययन में कपिल के दृष्टान्त से निर्लोभता का वर्णन किया गया है। जो व्यक्ति निर्लोभी होता है वह देव और देवराज इन्द्र का भी पूज्य बन जाता है। इसी आशय से इस नववें अध्ययन में नमि राजर्षि के साथ देवराज इन्द्र के जो प्रश्नोत्तर हुए हैं विस्तृत वर्णन किया गया है।
जीवन में कौनसा छोटा-सा क्षण निमित्त बन कर वैराग्य का कारण बन जाता है इस मर्मस्पर्शी घटना का चित्रण नमिराज के जीवन वृत्तांत में मिलता है। जो संक्षिप्त में इस प्रकार हैंमिथिला नरेश नमिराज के जीवन की यह घटना है। नमिराज एक बार दाह ज्वर की वेदना से पीड़ित हो गये। छह मास तक उन्हें भयंकर वेदना होती रही। वैद्यों के सभी उपचार निरर्थक सिद्ध हो रहे थे। अंत में वैद्यों ने सुझाव दिया कि गोशीर्ष (बावना) चंदन का लेप करने से इस • दाह ज्वर की वेदना शांत हो सकती है।
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शीघ्र ही गोशीर्ष (बावना ) चंदन आ गया। अपने स्वामी की वेदना से दुःखित रानियाँ स्वयं अपने हाथों से चंदन घिसने लगी। चंदन घिसते समय रानियों के हाथों में पहने हुए कंकणों की आवाज होने लगी। महाराजा नमि पहले से ही वेदना से व्याकुल हो रहे थे उन्हें यह शोरगुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा 'यह इतनी तीव्र आवाज किसकी है?' मंत्री ने निवेदन किया- 'राजन्! चंदन घिसने से रानियों के हाथों के कंकणों की आवाज हो रही है।' राजा का संकेत पाते ही रानियों ने तुरन्त सौभाग्य सूचक एक-एक कंकण रख लिया और शेष कंकण उतार दिये और पुनः चंदन घिसने लग गयी । शोरगुल बंद हो गया । नमिराज ने पूछा 'क्या चंदन घिसने का कार्य बंद हो गया है?' मंत्री ने कहा- 'नहीं', फिर आवाज कैसे बंद हो गई? नमिराज के इस प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने रानियों के एक-एक कंकण रखने की बात कही तो नमिराज के चिंतन ने गहरा मोड़ ले लिया और यह छोटी-सी घटना उनके आत्म जागरण का कारण बन गयी ।
नृप सोचने लगे कि - जहाँ अनेक हैं वही कलह हैं, शोरगुल हैं, द्वन्द्व, दुःख और संघर्ष हैं। जहाँ एक है वहाँ पूर्ण शांति है। राजा का विवेक जागृत हो गया। अंतर चेतना में वैराग्य
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