Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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१३० : ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
उत्तराध्ययन सूत्र - आठवां अध्ययन
उपसंहार इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्ध पण्णेणं। तरिहिति जे उ काहिति, तेहिं आराहिया दुवे लोग।त्ति बेमि॥२०॥
.. || अहमं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - विसुद्धपण्णेणं - निर्मल प्रज्ञा वाले ने, तरिहिंति - तर जायेंगे, काहिंति - करेंगे, आराहिया - आराधित किये, सफल कर लिये, दुवे. - दोनों, लोग - लोक।
भावार्थ - इस प्रकार विशुद्ध प्रज्ञा वाले कपिल मुनि ने यह धर्म कहा है। जो इस धर्म का पालन करेंगे वे संसार-सागर से तिर जायेंगे, उक्त धर्म का पालन करने वालों ने ही दोनों लोकों की आराधना की है अर्थात् उन्हों ही इहलोक और परलोक को सफल किया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ।
विवेचन - गाथा में स्पष्ट किया है कि धर्म का आराधन करने वाले इस लोकं और परलोक दोनों में ही पूजनीय होते हैं।
___ इस प्रकार यति धर्म का स्वरूप केवली भगवान् कपिल ने वर्णन किया है। जिसे सुन कर पांच सौ चोर प्रतिबोध को प्राप्त हो गए। दीक्षा ग्रहण करके संयम व्रत का आराधन करते हुए वे सब सद्गति को प्राप्त हुए। 'त्ति बेमि' का अर्थ पूर्ववत् है।
॥ इति कापिलीय नामक आठवाँ अध्ययन समाप्त॥
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