Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कठिन शब्दार्थ - बालत्तं
अज्ञानपना, पस्स
देख, अहम्
पडिवज्जिया - ग्रहण करके, चिच्चा छोड़ कर, धम्मं - धर्म को, अहम्मिट्ठे - अधर्मी ।
उत्तराध्ययन सूत्र - सातवां अध्ययन
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भावार्थ - बाल अर्थात् अज्ञानी पुरुष की अज्ञानता देखो कि वह अधर्म को अंगीकार करके धर्म का त्याग कर बहुत ही अधर्मी होकर नरक में उत्पन्न होता है ।
धीर जीव की गति
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धीरस्स पस्स धीरतं, सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे, देवेसु उववज्जइ ॥ २६ ॥
कठिन शब्दार्थ धीरस्स
धीर की, धीरतं
सर्व धर्मों का अनुवर्ती, अधम्मं - अधर्म को, धम्मिट्ठे - धर्मिष्ठ ।
भावार्थ - क्षमादि सभी धर्मों का पालन करने वाले, धीर - बुद्धिशाली पुरुष की धीरता बुद्धिमत्ता को देखो कि वह अधर्म का त्याग कर अतिशय धर्मात्मा होकर, देवों में उत्पन्न होता है।
उपसंहार
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. अधर्म को,
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तुलियाण बालभावं, अबाले चेव पंडिए ।
चइऊण बालभावं, अबालं सेवए मुणि ॥ ३० ॥ त्ति बेमि ॥
कठिन शब्दार्थ - तुलियाण तुलना करके, बालभावं बाल भाव को, चइऊण छोड़ कर, सेवए - सेवन करे ।
धैर्यता को, सव्वधम्माणुवत्तिणो
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भावार्थ - पण्डित (विवेकशील ) मुनि बालभाव (अज्ञानावस्था) तथा धीरता की . तुलना करके अज्ञानता का त्याग करे और धीरता का सेवन करे। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन प्रस्तुत गाथा में बाल भाव और पंडित भाव का स्वरूप जान लेने के बाद जीव के कर्त्तव्य का वर्णन किया गया है। बुद्धिमान् पुरुष का कर्त्तव्य है कि वह बाल भाव का त्याग कर पंडित भाव को ग्रहण करें।
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॥ इति औरभीय नामक सातवां अध्ययन समाप्त ॥
अध्ययन
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