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भावार्थ
इसके बाद पूर्ण ज्ञान दर्शन से सहित और मोह-रहित मुनिवर सभी जीवों के हितकारी मोक्ष के लिए और उन्हें आठ कर्मों से छुड़ाने के लिए कहने लगे । सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू ।
सव्वेसु कामजाए, पासमाणो ण लिप्पड़ ताई ॥ ४ ॥ कठिन शब्दार्थ - गंथं - ग्रन्थ - धनादि परिग्रह, कलहं परित्याग करे, तहाविहं - तथाविध, कामजाएसु - कामभोगों में, पासमाणो - देखता हुआ,
कलह, विप्पजहे
ताई - त्रायी - आत्मरक्षक मुनि, ण लिप्पड़ - लिप्त नहीं होता ।
भावार्थ साधु तथाविध-कर्मबन्ध कराने वाले, सभी बाह्य और आभ्यंतर परिग्रह और क्लेश तथा अन्य कषायों को छोड़ देवे। ऐसा करने वाला छह काया का रक्षक मुनि सभी मनोज्ञ शब्दादि विषय समूह में कटुक फल देखता हुआ उनमें लिप्त नहीं होता ।
विवेचन प्रस्तुत गाथा में कपिल केवली ने कर्मों से मुक्त होने का उपाय बताते हुए फरमाया कि भिक्षु धन आदि बाह्य और मिथ्यात्व आदि आंतरिक तथा क्रोधादि कषायों को कर्म बंध का कारण जान कर उनका त्याग कर देवें। साथ ही सभी प्रकार के रूप, रस, गंध, शब्द स्पर्श आदि विषयों के कटु परिणामों को देखता हुआ उनको भी छोड़ देवें ।
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'ताई' शब्द की टीका करते हुए टीकाकार ने कहा है -
" त्रायते रक्षति आत्मानं दुर्गतेरिति त्रायी” - दुर्गति से आत्मा की रक्षा करने वाला 'त्रायी' कहलाता है।
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उत्तराध्ययन सूत्र - आठवां अध्ययन
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भोगासक्त जीव की दशा
भोगामिसदोसविसण्णे, हिय- णिस्सेयसबुद्धि-वोच्चत्थे । बाले य मंदिर मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - भोगामिस - भोग रूप आमिष के, दोस विसण्णे दोषों में निमग्न, हिय - हित, णिस्सेयस निःश्रेयस (मोक्ष) में, बुद्धिवोच्चत्थे - विपरीत बुद्धि वाला, मंदिए - मंद मति, मूढे - मूढ, खेलम्मि - श्लेष्म (कफ) में, मच्छिया - मक्षिका, बज्झइबंध (फंस जाता है।
भावार्थ - जैसे आमिष (मांस) रसलोलुप प्राणियों के लिए अत्यन्त गृद्धि एवं दोष का
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