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औरभ्रीय - अज्ञानी जीव की गति
- ११५ kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
कामभोगों से अनिवृत्ति-निवृत्ति का फल इह कामाणियहस्स, अत्तट्टे अवरज्झइ। सोच्चा णेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सइ॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - कामाणियहस्स - कामभोगों से अनिवृत्त होने वाले का, अत्तढे - आत्मार्थ, अवरज्झइ - नाश हो जाता है, सोच्चा - सुन कर, णेयाउयं मग्गं - न्याय युक्त मार्ग को, परिभस्सइ - परिभ्रष्ट हो जाता है।
भावार्थ - इस लोक में शब्दादि विषयों से निवृत्त न होने वाले का, आत्मा का अर्थस्वर्ग आदि नष्ट हो जाता है, जिससे न्याय युक्त सम्यग्दर्शनादि रूप मोक्षमार्ग को सुन कर भी पुनः उससे भ्रष्ट हो जाता है। - इह कामणियदृस्स, अत्तढे णावरज्झइ।
पड़देहणिरोहेणं, भवे देवेत्ति मे सुयं ॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - कामणियदृस्स - कामभोगों से निवृत्त जीव का, पूइदेह - मलिन औदारिक शरीर के।
भावार्थ - इस लोक में कामभोगों से निवृत्त होने वाले पुरुष के आत्मा के अर्थ - स्वर्गादि का नाश नहीं होता है, अपवित्र इस औदारिक शरीर का त्याग कर वह व्यक्ति देव . होता है इस प्रकार मैंने सुना है।
इडी जुई जसो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं। भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववज्जइ॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - इड्डी - ऋद्धि, जुई - धुति, जसो - यश, वण्णो - वर्ण, सुहं - सुख, अणुत्तरं - अनुत्तर (प्रधान), उववज्जड़ - उत्पन्न होता है। .. भावार्थ - फिर देवभव के बाद वह आत्मा जहाँ. मनुष्यों में सर्व प्रधान ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण-श्लाघा आयु और सुख हों, वहाँ उत्पन्न होती है।
'अज्ञानी जीव की गति बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवजिया। चिच्चा धम्मं अहम्मिट्टे, णरए उववज्जइ॥२८॥
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