Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - सातवां अध्ययन *****************************AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA*****
“एक व्यक्ति एक गाय-बछड़ा और बकरे - मेमने का पालन करता है। वह बकरे को अच्छा स्वादिष्ट एवं पोष्टिक भोजन खिलाता है। बकरा हृष्ट-पुष्ट होने लगा। वह व्यक्ति गाय और बछड़े को सूखी घास डालता है। बछड़ा अपने स्वामी के इस भेद पूर्ण व्यवहार को देख कर अपनी मां से शिकायत करता है - "माँ! यह स्वामी बकरे को कितना पौष्टिक आहार देता है, जबकि तुम इसे दूध देती हो तब भी तुम्हें सूखी घास देता है और मुझे तो वह भी पूरा नहीं देता है। यह भेद क्यों है?" ___ गाय अपने प्रिय बछड़े को समझा कर कहती है - "बेटा! अपने स्वामी के भेदभाव का कारण है - वह इस बकरे को अच्छा भोजन देता है, इसे मोटा-ताजा बना रहा है, इसका अर्थ है अब इस बकरे की मृत्यु निकट आ गई है। कुछ दिनों बाद तुम खुद अपने दिमाग.से निर्णय कर लेना कि प्रतिदिन पौष्टिक भोजन खाने वाले की क्या दशा होती है?"
एक दिन उस स्वामी के यहाँ कुछ अतिथि मेहमान आ जाते हैं और उस बकरे को काटा जाता है। इस भयानक दृश्य को देखकर बछड़ा कांप उठता है। वह माँ से पूछता है - "माँ! क्या हमें भी अतिथि के स्वागत के लिए इस तरह से काटा जायेगा?"
माँ ने सहज मुस्कान के साथ उत्तर दिया - ‘नहीं बेटा! हमने तो सूखी घास खाई है - हमारी यह स्थिति क्यों होगी?'
कहावत हैं - "जो करेगा घटका वो सहेगा झटका" जो नित्य प्रति माल मलीदे खाता है- गुलछर्रे उड़ाता है उसे ही इस तरह के दुःख पूर्ण झटके सहन करने पड़ते हैं। मनोज्ञ कामभोगों की आसक्ति साधक जीवन को इसी प्रकार से नष्टभ्रष्ट कर देती है।"
. इस दृष्टान्त से यह सिद्ध होता है कि जो लोग अधर्माचरण में प्रवृत्त होते हुए रसों में अधिक आसक्ति - अधिक लम्पटता रखते हैं, वे निस्संदेह नरकादि गति की अशुभ आयु को बांधते हैं।
नरकायु के अनुकूल पापकर्म हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणम्मि विलोवए। अण्णदत्तहरे तेणे, माई कण्हु हरे सढे॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे। . भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे॥६॥
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