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औरश्रीय- नरकायु
तओ से पुट्ठे परिवूढे, जायमेए महोयरे । पीणिए विउले देहे, आएसं परिकंख ॥ २ ॥
कठिन शब्दार्थ पुट्ठे - पुष्ट, परिवूढे - समर्थ, जायमेए - वाला, महोयरे - महान् उदर वाला, पीणिए - तृप्त, विउले - विपुल, देहे आदेश - मेहमान की, परिकंखए प्रतीक्षा करता है।
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अनुकूल
भावार्थ - इसके बाद जब वह बकरा पुष्ट, समर्थ, चर्बी वाला, बड़े पेट वाला और तृप्त हो कर स्थूल शरीर वाला हो जाता है तब उसका स्वामी पाहुने की प्रतीक्षा करता है। विवेचन - प्रस्तुत गाथा में बकरे की दशा का वर्णन किया गया है।
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पापकर्म
जाव ण एइ आएसे, ताव जीवइ से दुही।
अह पत्तम्मि आएसे, सीसं छेत्तूण भुज्जइ ॥ ३॥
कठिन शब्दार्थ - एइ - आता, जीवइ - जीता है, दुही - दुःखी, पत्तम्मि खाया जाता है।
होने पर, सीसं - मस्तक को, छेत्तुण - छेदन करके, भुज्जइ जब तक पाहुना नहीं आता है तब तक वह जीता है। इसके बाद पाहुने के आने पर उसे मस्तक काट कर खाया जाता है। तब वह दुःखी होता है।
भावार्थ
दान्तिक (उपनय)
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जहा से खलु ओरब्भे, आएसाए समीहिए ।
एवं बाले अहम्मिट्ठे, ईहइ णरयाउयं ॥ ४ ॥ कठिन शब्दार्थ ओरब्भे मेहमान के लिए, समीहिए बकरा, आएसाए समीहित ( प्रकल्पित), अहम्मिट्ठे - अधर्मिष्ठ, ईहइ - इच्छा करता है, चाहता है, णरयाउयंनरका की ।
बढ़ी हुए मेद - चर्बी
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• देह, आएसं -
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भावार्थ जिस प्रकार निश्चय ही वह पुष्ट हुआ बकरा पाहुने के लिए इष्ट है और पाहुने के उद्देश्य से रखा गया है इसी प्रकार अधर्मिष्ठ, अज्ञानी जीव भी पापाचरण कर के नरका की इच्छा करता है अर्थात् नरक गति में जाता है।
विवेचन जीव थोड़े से इन्द्रिय सुख के लिए अमूल्य आत्म-निधि को न भूले, इसके लिए सूत्रकार द्वारा दिया गया एलक दृष्टान्त और उसका दान्तिक इस प्रकार है
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