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क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय - उपसंहार
१०१ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ ज्ञातपुत्र, भयवं - भगवान् ने, वेसालिए - वैशालिक - विशाल यशस्वी, वियाहिए - व्याख्या की है। ___भावार्थ - अनुत्तर ज्ञानी - सर्वज्ञ, अनुत्तर दर्शन वाले, अनुत्तर ज्ञान और दर्शन के धारक विशाल तीर्थ के नायक देव और मनुष्यों की परिषद् के व्याख्याता, उन अरहन्त, ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर ने इस प्रकार फरमाया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ।
विवेचन - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य श्री जंबू स्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू! भगवान् ज्ञातपुत्र महावीर स्वामी ने इस प्रकार उक्त अध्ययन की व्याख्या की है जो मैंने तुम्हें कहा है।
भगवान् सर्वोत्कृष्ट ज्ञान और दर्शन के धारक हैं तथा इन्द्रादि देवों के द्वारा पूजनीय होने • से अर्हन् कहलाते हैं और ज्ञातवंशीय महाराजा सिद्धार्थ के पुत्र एवं महारानी त्रिशला के अंगजात हैं। जो विस्तृत कीर्ति वाले या विस्तार युक्त शिष्य समुदाय वाले होने से 'वैशालिक' कहे जाते हैं। उन्होंने देव और मनुष्यों की सभा में इस क्षुल्लक निर्ग्रन्थी' नामक अध्ययन का वर्णन किया है। . . प्रस्तुत गाथा में भगवान् के गुणों का वर्णन इसलिए किया गया है कि निर्ग्रन्थ धर्म सर्वज्ञ . भाषित है, मोक्ष का अत्यंत साधक है अतएव इसके सम्यग् आराधन से जीव अवश्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
॥ इति क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय नामक छठा अध्ययन समाप्त॥
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