Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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औरभ्रीय - तीन वणिकों का दृष्टान्त
देव-मनुष्यायु अणेग वासाणउया, जा सा पण्णवओ ठिई। जाई जीयंति दुम्मेहा, ऊणें वाससयाउए॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - अणेगवासाणउया - वर्षों के अनेक नयुत, पण्णवओ - प्रज्ञावान्, ठिई - स्थिति, जाइं - उन वर्षों को, दिव्यसुखों को, जीयंति - हार जाते हैं, दुम्मेहा - दुर्बुद्धि, ऊणे - न्यून, वाससयाउए - सौ वर्ष की आयु वाले। __ भावार्थ - प्रज्ञावान् अर्थात् ज्ञान और क्रियाशील पुरुष की देवगति में जो वह प्रसिद्ध अनेकों नयुत परिमाण वाली अर्थात् पल्योपम और सागरोपम की स्थिति होती है, उस दिव्य स्थिति के उन वर्षों को दुर्बुद्धि मनुष्य सौ वर्ष से भी कम आयु वाली छोटी-सी मनुष्यायु में हार जाते हैं। ___विवेचन - उपर्युक्त गाथाओं में देवों और मनुष्यों के कामभोगों की तुलना की गयी है। देवों के दिव्य सुखों के सामने मनुष्यों के सुख क्षणिक और तुच्छ हैं।
• नयुत एक संख्यावाचक शब्द है। चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग होता है। चौरासी लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता है। चौरासी लाख पूर्व का एक नयुतांग और चौरासी लाख नयुतांग का एक नयुत होता है।
. तीन वणिकों का दृष्टान्त जहा य तिण्णि वाणिया, मूलं घेत्तूण णिग्गया। एगोऽत्थ लहइ लाहं, एगो मूलेण आगओ॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - तिण्णि - तीन, वाणिया - वणिक, मूलं - मूल धन, घेत्तूण - लेकर; णिग्गया - निकले, एगो - एक, अत्थ - उनमें से, लहइ - प्राप्त करता है, लाहं - लाभ को, मूलेण - मूल को लेकर, आगओ - आया।
भावार्थ - जिस प्रकार तीन वणिक मूल पूंजी. लेकर व्यापार करने के लिए निकले, उनमें से एक लाभ प्राप्त कर के आया और एक मूल पूंजी ले कर लौट आया।
एगो मूलं वि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह॥१५॥
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