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अयकक्करभोई य, तुंदिले चियलोहिए ।
आउयं णरए कंखे, जहाएसं व एलए ॥ ७ ॥
कठिन शब्दार्थ - हिंसे - हिंसा करने वाला, बाले - अज्ञानी, मुसावाई - मृषावादी, अद्धाणंमि मार्ग में, विलोवए - लूटने वाला, अण्णदत्तहरे - बिना दिए वस्तु उठाने वाला, तेणे चोर, माई - मायी छल करने वाला, हरे रूँ, शठ धूर्त | इत्थीविसयगिद्धे स्त्री के विषय में गृद्ध (आसक्त )
परिग्रह वाला भुंजमाणे - खाता हुआ, सुरं- सुरा मद्य, मंसं
शरीर वाला, परंदमे - दूसरों का दमन करने वाला ।
अयकक्करभोई - अज (बकरे ) के कर्कर शब्द करने वाले मांस का भोजी, तुंदिल्ले - मोटी तोंद वाला, चिय लोहिए - चितलोहित णरए नरक के, कंखे - आकांक्षा करता है ।
अधिक रक्त वाला, आउयं
आयुष्य की
औरश्रीय- नरकायु के
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अनुकूल पापकर्म
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महारंभ परिग्गहे
१०५ *****
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महा आरंभ
मांस को, परिवूढे - समर्थ
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भावार्थ - नरक गति में जाने वाला जीव कैसे पाप कर्म करता है, यह बात इन गाथाओं में बताई जाती है. - अज्ञानी, हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, मार्ग में लूटने वाला, दूसरे की वस्तु बिना दिये लेने वाला, चोरी करने वाला, छल-कपट करने वाला, 'किसके यहाँ चोरी करूँ' इस प्रकार दुष्ट अध्यवसाय वाला, शठ (वक्र आचार वाला), स्त्री और विषयों में आसक्त बना हुआ और महाआरम्भ और परिग्रह वाला, मदिरा और मांस को खाने वाला, पुष्ट शरीर वाला तथा दूसरों का दमन करने वाला, खाने में कड़कड़ शब्द हो ऐसा भुना हुआ बकरे का मांस खाने वाला, बढ़ी हुई तोंद वाला अधिक रक्त वाला। सांसारिक सुखों के लिए इस प्रकार विविध पापाचरण करने वाला जीव, नरक की आयु की उसी प्रकार इच्छा करता है, जैसे बकरे के पुष्ट होने पर उसका स्वामी, पाहुने की इच्छा करता है॥५,६,७॥
विवेचन - उपरोक्त गाथाओं में जो जीव नरक की आयु को चाहने वाले होते हैं उनके लक्षणों - आचरणों का वर्णन किया गया हैं।
नरक के ४ हेतु हैं १. महारंभ २. महापरिग्रह ३. मद्य मांस का सेवन और ४. पंचेन्द्रिय वध । नरक गति में जाने के इन कारणों ( नरक योग्य कर्मों) का ही प्रस्तुत गाथाओं में दिग्दर्शन कराया गया है।
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