Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय - परिग्रह त्याग का फल kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk दिग्दर्शन कराया गया है। यद्यपि त्याग का वास्तविक फल तो मोक्ष है परन्तु सराग - राग पूर्वक त्याग का फल देवलोक बताया गया है।
थावरं जंगमं चेव, धणं धण्णं उवक्खरं। पच्चमाणस्स कम्मेहिं, णालं दुक्खाउ मोयणे॥६॥
कठिन शब्दार्थ - थावरं - स्थावर, जंगमं - जंगम - चल सम्पत्ति, धणं - धन, धण्णं - धान्य, उवक्खरं - उपस्कर - घर के उपकरण, पच्चमाणस्स - दुःख पाता हुआ, कम्मेहिं - कर्मों से, दुक्खाओ - दुःख से, मोयणे - छुड़ाने को।
भावार्थ - स्थावर और जंगम - चल सम्पत्ति धन, धान्य और घर के उपकरण, ये सभी अपने कर्मों से दुःख भोगते हुए प्राणी को दुःख से छुड़ाने में समर्थ नहीं है। . विवेचन - जब जीव अपने किए हुए कर्मों से दुःख को प्राप्त होता है। तब घर दुकान धन धान्य आदि कुछ भी सामग्री आदि सांसारिक पदार्थ उसके दुःख को मिटाने या कम करने की शक्ति नहीं रखता, अतः ममत्व बुद्धि का त्याग कर देना चाहिये। __ अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए।
ण हणे पाणिणो पाणे, भय-वेराओ उवरए॥७॥
कठिन शब्दार्थ - अज्झत्थं - अध्यात्म, दिस्स - देख करके, पाणे - प्राणों को, पियायए - प्रिय स्वरूपों को, ण हणे - घात न करे, पाणिणो.- प्राणी के, वेराओ - वैर से, उवरए .- उपरत - निवृत्त। ... भावार्थ - सभी प्रकार के इष्ट-अनिष्ट दोनों वस्तुओं के संयोग और वियोग से होने वाले, सभी आत्मा में होने वाले सुख दुःख को, प्रिय तथा अप्रिय रूप जान कर तथा 'प्राणियों को अपनी आत्मा प्यारी है' - ऐसा जान कर मुमुक्षु भय और वैर से निवृत्त होता हुआ प्राणियों के प्राणों की घात नहीं करे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में सांसारिक पदार्थों से सम्बन्ध विच्छेद करने वाले सत्यान्वेषी पुरुष के कर्तव्य का कथन किया गया है।
आयाणं णरयं दिस्स, णायइज तणामवि। दोगुंछी अप्पणो पाए, दिण्णं भुंजिज्ज भोयणं॥८॥ कठिन शब्दार्थ - आयाणं - आदान - धन धान्यादि को, णरयं - नरक का, दिस्सं -
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