Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अकाम मरणीय - उपसंहार
**********
भावार्थ इसके बाद मृत्यु समय प्राप्त होने पर मुनि शरीर का ममत्वभाव छोड़ कर भक्त - प्रत्याख्यान, इंगित और पादपोपगमन इन तीन मरणों में से किसी एक मरण से सकाममरण मरता है। इस प्रकार मैं कहता हूँ ।
विवेचन प्रस्तुत गाथा
शास्त्रकार ने तीन प्रकार से सकाम मरण की प्राप्ति का कथन
********
-
किया है। यथा -
Jain Education International
-
१. भक्तप्रत्याख्यान
त्याग हो, उसे भक्त - प्रत्याख्यान कहते हैं।
२. इंगित मरण - निश्चित की हुई भूमि से बाहर न जाने की प्रतिज्ञा इंगित मरण है। ३. पादपोपगमन - वृक्ष की कटी हुई शाखा की तरह एक ही स्थान में स्थिर पड़े रहने को पादपोपगमन कहते हैं।
ह
जिसमें यावज्जीवन के लिए त्रिविध या चतुर्विध आहार का
मृत्यु समय के अति निकट आने पर संलेखना आदि के द्वारा औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरों का अंत करता हुआ साधक भक्त - प्रत्याख्यान आदि में से किसी एक मरण से सकाम मृत्यु को प्राप्त करे । 'त्ति बेमि' का अर्थ पूर्ववत् है ।
॥ इति अकाम मरण नामक पांचवां अध्ययन समाप्त ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org