________________
८२
उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन । kakkkkkkkkkkkkkkAAAAAAAAAAAAkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk मेयं - मैंने, अणुस्सुयं - सुना है, अहाकम्मेहिं - अपने कर्मों के अनुसार, गच्छंतो - जाता हुआ, परितप्पड़ - परिताप करता है।
भावार्थ - वहाँ नरक में उत्पन्न होने का स्थान जैसा दुःखदायी है मैंने उसके विषय में सुना है। बाद में - आयु क्षीण होने पर अपने कर्मों के अनुसार वहाँ जाता हुआ वह जीव पश्चात्ताप करता है।
विवेचन - नरक में उत्पन्न होने के कुंभी आदि अनेक स्थान हैं, उन स्थानों में अपने . किए अशुभ कर्मों के प्रभाव से नरक में जाकर उत्पन्न होने वाला जीव, आयु के क्षय होने पर इस प्रकार पश्चात्ताप करता है - हा! मुझे धिक्कार है। मैंने कुछ भी सुकृत नहीं किया, दुर्लभ मानव जीवन का मैंने कुछ भी मूल्य नहीं समझा। मैं बड़ा मंद भागी हूँ इत्यादि। अंत समय में नरक गति का ध्यान आने से वह अबोध प्राणी अत्यंत भयभीत हो उठता है।
गाड़ीवान् का दृष्टान्त जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं। विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भग्गम्मि सोयइ॥१४॥ .
कठिन शब्दार्थ - सागडिओ - गाड़ी वाला, जाणं - जान कर, समं - समान, हिच्चा- छोड़ कर, महापहं - महापथ को, विसमं - विषम, मग्गं - मार्ग को, ओइण्णो - प्राप्त हुआ, अक्खे - धुरी के, भग्गम्मि - टूट जाने पर, सोयइ - 'शोक करता है।
भावार्थ - जैसे गाड़ीवान् जान बूझ कर समतल महापथ (राजमार्ग) छोड़ कर विषम मार्ग को प्राप्त हुआ धुरी के टूट जाने पर शोक करता है।
एवं धम्मं विउक्कम्म, अहम्मं पडिवज्जिया। बाले मच्चुमुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयइ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - विउक्कम्म - छोड़कर, अहम्मं - अधर्म को, पडिवजिया - स्वीकार करने वाला, मच्चुमुहं - मृत्यु के मुख में, पत्ते - प्राप्त होकर।
भावार्थ - इसी प्रकार धर्म को छोड़ कर अधर्म को स्वीकार करने वाला अज्ञानी जीव मृत्यु के मुख में प्राप्त हो कर उसी प्रकार पश्चात्ताप करता है जैसे धुरी के टूट जाने पर गाड़ीवान् शोक करता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org