Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अकाम मरणीय - सकाम मरण का स्वरूप
८३ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
विवेचन - गाड़ीवान् का दृष्टान्त दे कर प्रस्तुत गाथाओं में धर्म का त्याग कर अधर्म को स्वीकार करने से होने वाले परिणाम का दिग्दर्शन कराया गया है। जो अज्ञानी व्यक्ति धर्म का उल्लंघन कर अधर्म को स्वीकार कर लेता है, वह मृत्यु के मुख में पड़ने पर उसी प्रकार शोक करता है जैसे धुरी के टूट जाने पर गाड़ीवान् करता है।
तओ से मरणंतम्मि, बाले संतस्सइ भया। अकाम-मरणं मरइ, धुत्ते व कलिणा जिए॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - मरणंतम्मि - मृत्यु रूप प्राणांत के समय, बाले - अज्ञानी, संतस्सइसंत्रस्त होता है, भया - भय से, धुत्ते व - जुआरी की तरह, कलिणा - कलि-दाव में, जिए - हारे हुए।
भावार्थ - इसके बाद मरण रूप अन्त समय के उपस्थित होने पर वह अज्ञानात्मा नरकगति में जाने के डर से कांपता है और दाव में हारे हुए जुआरी के समान, दिव्य-सुखों को हारा हुआ वह पापात्मा अकाममरण मरता है।
.. विवेचन - प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार जुए में दो प्रकार के दाव होते थे - १. कृतदाव और २. कलिदाव। ‘कृत' जीत का दाव और 'कलि' हार का दाव माना जाता था। प्रस्तुत गाथा में 'कलिणा जिए' शब्द आया है जिसका अर्थ है - एक ही दाव में पराजित।
..सकाम मरण का स्वरूप एयं अकाम-मरणं, बालाणं तु पवेइयं। इत्तो सकाम-मरणं, पंडियाणं सुणेह मे॥१७॥ .
कठिन शब्दार्थ - पवेइयं - कहा गया है, इत्तो - यहाँ से आगे, पंडियाणं - पंडित पुरुषों का, सुणेह - सुनो।
भावार्थ - यह अज्ञानी जीवों का अकाम-मरण कहा गया है, यहाँ से आगे पण्डित पुरुषों का सकाम-मरण मैं कहता हूँ सो सुनो।
विवेचन - पूर्वोक्त गाथाओं में बाल जीवों के अकाम मरण का वर्णन करने के बाद सूत्रकार अब पंडितों के सकाम मरण का वर्णन करते हैं।
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