Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अकाम मरणीय - इह-पारलौकिक दुष्फल का भय kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
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इह-पारलौकिक दुष्फल का भय तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पइ। पभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेही अप्पणो॥११॥
कठिन शब्दार्थ - तओ - तदनन्तर, पुट्ठो - स्पर्शित हुआ, आयंकेणं - आतंक से, गिलाणो - ग्लान - रोगी, परितप्पड़ - खेद को पाता है, पभीओ - डरता हुआ, परलोगस्सपरलोक से, कम्माणुप्पेही - कर्मों को देखने वाला, अप्पणो - अपने किये हुए।
भावार्थ - इसके बाद शीघ्र ही घात करने वाले शूलादि रोग से पीड़ित हुआ वह अज्ञानी जीव मन में ग्लानि का अनुभव करता है तथा परलोक से डरा हुआ वह जीव अपने दुष्ट कर्मों को याद करके पश्चात्ताप करता है। - विवेचन - प्रस्तुत गाथा में विषय वासनाओं के उद्रेक से अधिक कर्म मल का संचय करने वाले जीव की रोग आदि के उपस्थित होने पर जो दशा होती है, उसका चित्रण किया गया है। . सुया मे णरए ठाणा, असीलाणं च जा गई।
बालाणं कूरकम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा ॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - सुया - सुना है, मे - मैंने, णरए ठाणा - नरक में स्थान, असीलाणं- दुष्टों की, जा - जो, गई - गति, बालाणं - अज्ञानियों, कूरकम्माणं - क्रूर कर्म करने वाले, पगाढा - प्रगाढ़, जत्थ - जहाँ, वेयणा - वेदना।
भावार्थ - सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि हे आयुष्मन् जम्बू! मैंने नरक में उत्पन्न होने के स्थानों के विषय में भगवान् से सुना है और दुःशील पुरुषों की जो गति (नरक गति) होती है, उसे भी सुना है, जहाँ क्रूर कर्म वाले, बाल (अज्ञानी) जीवों को, प्रगाढ़ (असह्य) वेदना होती है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में दुष्ट कर्मों के फलस्वरूप नरक आदि यातनाओं का दिग्दर्शन कराया गया है।
तत्थोववाइयं ठाणं, जहा मेयमणुस्सुयं। आहाकम्मेहिं गच्छंतो, सो पच्छा परितप्पड़॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - तत्थ -. वहाँ पर, उववाइयं - उत्पन्न होने के, ठाणं - स्थान को,
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