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अकाम मरणीय
भावार्थ
सकाम मरण ।
विवेचन - मृत्यु के समय सभी जीव इन दो स्थानों के आश्रित होकर मृत्यु को प्राप्त
होते हैं -
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मरण रूप अन्त समय के ये दो स्थान कहे गये हैं
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अकाम मरण का स्वरूप
१. अकाम मरण
प्राप्त होते हैं उनकी मृत्यु को बाल मरण या अकाम मरण कहते हैं।
२. सकाम मरण
जो जीव ज्ञान पूर्वक मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी यह ज्ञानगर्भित
मृत्यु पंडित मरण या सकाम मरण कहलाती है। इसी बात को आगे की गाथा में स्पष्ट करते हैं
बालाणं तु अकामं तु, मरणं असई भवे । पंडियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सइं भवे ॥३॥ कठिन शब्दार्थ - बालाणं - अज्ञानियों का, अकामं मरण, असई बार-बार, भवे होता है, पंडियाणं उक्कोसेण भावार्थ - अज्ञानी जीवों के मरण तो उत्कृष्ट (केवलज्ञानी की अपेक्षा) एक ही बार होता है ।
उत्कृष्टता से, सई - एक ही बार ।
विवेचन - जो सदा सद् के विचारों से विकल है उन मूर्खों की अकाम मृत्यु अनेक बार होती हैं. क्योंकि वे विषय कषायों के वशीभूत होकर बार-बार जन्म मरण करते हैं। इसके विपरीत जो सद्-असद् का विचार करने वाले पंडित पुरुष हैं उनकी मृत्यु उत्कृष्ट रूप से एक ही बार होती है। यह कथन केवलज्ञान प्राप्त मुनि की अपेक्षा से हैं ।
अकाम मरण का स्वरूप
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जो जीव अज्ञान की दशा में अज्ञान के वशीभूत होकर मृत्यु को
तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं ।
काम - गिद्धे जहा बाले, भिसं कूराइं कुव्वइ ॥ ४ ॥
कठिन शब्दार्थ - तत्थ वहाँ देसिय- बतलाया गया है, कामगिद्धे कूराई - क्रूर, कुव्वइ - करता है।
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अकाम मरण तथा
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- अकाम, तु - तो, मरणं पंडितों का,
सकामं
अकाम मरण ही बार-बार होता है, पंडित पुरुषों का सकाम
उन दो स्थानों में, पढमं ठाणं
आसक्त,
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सकाम,
प्रथम स्थान,
भिसं - भीषण - अतिशय,
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