Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन xxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
भावार्थ - इनमें से यह पहला स्थान यानी अकाम-मरण, भगवान् महावीर ने कहा है। जिस प्रकार इन्द्रिय विषयों में आसक्त अज्ञानी जीव अत्यन्त क्रूर कर्म करता है॥४॥
विवेचन - जो अज्ञानी जीव कामवासनाओं में अत्यंत आसक्ति रखने वाले हैं और हिंसा आदि अति क्रूर कर्मों का आचरण करने वाले हैं उनका अकाम मरण होता है - ऐसा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है।
जैसे अबोध बालक अपने हित और अहित को नहीं जानता, उसी प्रकार अज्ञानी - मूर्ख जीव भी अपने हित का कुछ भी विचार न करता हुआ हिंसा आदि क्रूर कर्मों में प्रवृत्त हो जाता है जिसका कि फल अकाम मरण है।
कामभोगासक्त पुरुष की विचारणा जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छइ। ण मे दिटे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई॥५॥
कठिन शब्दार्थ - गिद्धे - मूर्छित, कामभोगेसु - कामभोगों में, कूडाय - कूट की। ओर - नरक में, दिढे - देखा, परे लोए - परलोक, चक्खुदिट्ठा - चक्षुदृष्टि, इमा - यह, रई - रति।
. भावार्थ - जो शब्द और रूप के काम तथा स्पर्श, रस और गन्ध रूप भोग में आसक्त है वह अकेला ही नरक में जाता है अथवा कूट-द्रव्य से मृगबन्धनादि और भाव से मिथ्या भाषणादि में प्रवृत्ति करता है। किसी हितैषी द्वारा प्रेरणा किये जाने पर वह उत्तर देता है कि मैंने परलोक नहीं देखा है और यह शब्दादि विषयों का सुख प्रत्यक्ष ही दिखाई दे रहा है।।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में विषयासक्त पुरुष के जघन्य विचारों और उसकी विषयासक्ति के भावी फलोदय का दिग्दर्शन कराया गया है।
हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए, अत्थि वा णत्थि वा पुणो॥६॥
भावार्थ - हत्थागया - हाथ में आये हुए, कामा - काम-भोग, कालिया - कालिक, अणागया - अनागत - भविष्य में होने वाले, को - कौन, जाणइ - जानता है, अत्थि - है, वा - अथवा, णत्थि - नहीं, पुणो - फिर।
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