Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - पहला अध्ययन *****************AAAAAAAAAAAAAA************************
कठिन शब्दार्थ - णाइदूरं - न अधिक दूर, अणासण्णे - न अति समीप, णाण्णेसिं (णण्णेसिं) - न औरों के, चक्खुफासओ - चक्षु स्पर्श में, भत्तट्ठा - भत्त (भोजन) के लिए, लंघित्ता - उल्लंघन करके, णाइक्कमे - प्रवेश न करे।
भावार्थ - गृहस्थ के घर पर भिखारी खड़े हों, तो गोचरी गया हुआ साधु उन्हें लाँघ कर गृहस्थ के घर में प्रवेश न करें, किन्तु वहाँ से न अति दूर और न अति निकट जहाँ दाता और भिखारी दोनों की दृष्टि न पड़ती हो वहाँ राग-द्वेष न करता हुआ यतना पूर्वक खड़ा रहे।
. पिण्डैषणा णाइउच्चे व णीए वा, णासण्णे णाइदूरओ। फासयं परकडं पिंडं, पडिगाहिज संजए॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - अइउच्चे - अधिक ऊंचे स्थान, णीए - नीचे स्थान, आसण्णे - समीप, अइदूरओ - अधिक दूर, फासुयं - प्रासुक, परकडं - परकृत - गृहस्थ के लिए बनाया हुआ, पिंडं - आहार, पडिगाहिज - ग्रहण करे, संजए - साधु। .
भावार्थ - दाता से अधिक ऊंचे स्थान और न अधिक नीचे स्थान, इसी प्रकार न अधिक निकट और न अधिक दूर खड़े होकर भिक्षा ग्रहण करे किन्तु साधु उचित स्थान पर खड़ा हो कर गृहस्थ के लिए बनाया हुआ प्रासुक आहार ग्रहण करे।
ग्रासैषणा अप्पपाणेऽप्पबीयम्मि, पडिच्छण्णम्मि संवुडे। समयं संजए भुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - अप्पपाणे - बेइन्द्रिय आदि प्राणियों से रहित, अप्पबीयम्मि - बीज रहित, पडिच्छण्णंमि - ऊपर से ढके हुए, संवुडे - संवृत (चारों ओर से घिरे हुए) स्थान में, समयं - साथ में अथवा समता पूर्वक, भुंजे - आहार करे, जयं - यतना पूर्वक, अपरिसाडियंनहीं गिराते हुए।
. भावार्थ - द्वीन्द्रियादि प्राणियों से रहित, शाली आदि बीज रहित, ऊपर से ढके हुए और चारों ओर से घिरे हुए स्थान में संयमी साधु दूसरे साधुओं के साथ यतना पूर्वक आहार का कण न गिराते हुए उपभोग करे।
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