Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - गुरु की प्रसन्नता और अप्रसन्नता ***************AAAAAAAAAkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिण्णे सुहडे मडे। सुणिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज वजए मुणी॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - सुकडित्ति - बहुत अच्छा किया है, सुपक्कित्ति - बहुत अच्छा पकाया है, सुच्छिण्णे - बहुत अच्छा छेदन किया है, सुहडे - तीखेपन, कडवेपन को अच्छा दूर किया, मडे - अच्छी तरह निर्जीव हो गया है, सुणिट्ठिए - घृतादि अच्छा भरा है, सुलट्ठित्ति - यह बहुत ही सुंदर है, सावजं - सावध, वजए - त्याग करे।
भावार्थ - आहार करते समय साधु इस प्रकार न बोले 'अच्छा बनाया, अच्छा पकाया, शाक-पत्रादि का छेदन अच्छा किया, शाकादि के तीखेपन आदि को अच्छा दूर किया, सत्तु आदि में घृतादि का खूब समावेश किया, यह भोजन रसोत्कर्षता को प्राप्त है और यह आहार रसादि सभी प्रकार से सुंदर हैं' इस प्रकार मुनि सावध वचनों का त्याग करें। - विवेचन - इस गाथा में साधु को भोजन करते समय अनावश्यक वचन और सावध वचन के परित्याग का आदेश किया गया है।
गुरु की प्रसन्नता और अप्रसन्नता रमए पंडिए सासं, हयं भदं व वाहए। बालं सम्मइ सासंतो, गलिअस्सं व वाहए॥३७॥
कठिन शब्दार्थ - रमए - प्रसन्न होता है, पंडिए - पंडित - विनीत, सासं - सिखाता हुआ, हयं - घोड़े को, भदं - भद्र, वाहए - वाहक, बालं - बाल-अबोध-अविनीत को, सम्मइ - खेदित होता है, सासंतो - अनुशासन करता हुआ-शिक्षा देता हुआ, गलिअस्सं - दुष्ट घोड़े को। ..
भावार्थ - जैसे भद्र घोड़े को सिखाता हुआ सवार प्रसन्न होता है, उसी प्रकार विनीत शिष्यों को शिक्षा देता हुआ गुरु प्रसन्न होता है और जैसे दुष्ट घोड़े को शिक्षा देता हुआ सवार खेदित होता है उसी प्रकार अविनीत शिष्य को शिक्षा देता हुआ गुरु खेदित होता है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में सरल और दुष्ट स्वभाव के अश्व का दृष्टान्त देते हुए सूत्रकार ने स्पष्ट किया है कि विनीत शिष्य को शिक्षा देने से गुरुजनों को किस प्रकार के सुफल की प्राप्ति होती है और इससे विपरीत अविनीत शिष्य को शिक्षा देने पर उन्हें किस कुफल का अनुभव करना पड़ता है।
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