Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
परीषह - सुधर्मा स्वामी का समाधान
२६
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
शंका - भगवान् ने स्वयं बतलाये हैं या किसी से सुन कर?
समाधान - किसी से सुन कर नहीं किन्तु अपने केवलज्ञान में देख कर इनका प्रतिपादन किया है।
. साधु मुनिराज इन परीषहों को अपने गुरु भगवंतों के मुखारविंद से सुन कर यथावत् जान कर के पुनः पुनः अभ्यास के द्वारा इन से परिचित हो कर और इनके सामर्थ्य को नष्ट करके अपने चारित्र में - स्वीकृत नियम में दृढ़ रहने का प्रयत्न करे किन्तु भिक्षाचरी में घूमते हुएभिक्षा के निमित्त भ्रमण करते हुए साधु को यदि कोई परीषह उपसर्ग (कष्ट) आ जावे तो वह दृढ़ता से और समभाव से उसका सामना करे तथा उस पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करे परन्तु परीषह से डर कर अपने संयम मार्ग से भ्रष्ट होने की गर्हित चेष्टा कदापि न करें।
- शंका - काश्यप शब्द सामान्यतया भगवान् ऋषभदेव का वाचक है फिर यहाँ भगवान् महावीर स्वामी के लिए काश्यप' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है?
समाधान - यद्यपि काश्यप शब्द सामान्यतया भगवान् ऋषभदेवस्वामी का वाचक है परन्तु टीकाकार ने यहाँ पर काश्यप शब्द से भगवान् महावीर स्वामी का ग्रहण किया है क्योंकि वे ही इस समय शासनपति हैं। अब जम्बू स्वामी की परीषहों के विषय में जो जिज्ञासा है उसका उल्लेख किया जाता है।
जम्बू स्वामी की जिज्ञासा कयरे खलु ते बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया जे भिक्खू सुच्चा णच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो णो विणिहण्णेजा?
भावार्थ - शिष्य पूछता है कि हे भगवन्! वे बाईस परीषह कौन से हैं, जिन्हें काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कहे हैं, जिन्हें सुन कर, जिनके स्वरूप को जान कर, अभ्यस्त कर और जीत कर साधु भिक्षाचर्या में जाते हुए परीषहों के उपस्थित होने पर संयम से विचलित न होवे।
... सुधर्मा स्वामी का समाधान इमे खलु ते बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org