Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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परीषह - परीषहों का स्वरूप आक्रोश परीषह
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सीलन भरे कोमल या कठोर प्रदेश वाले स्थान या उपाश्रय को पाकर भी जो साधु आर्त्तध्यान रौद्रध्यान से रहित होकर समभाव पूर्वक आवास स्थान संबंधी बाधाओं को सह लेता है, वह शय्या परीषह - जयी कहलाता है।
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१२. आक्रोश परीषह
अक्कोसेज्जा परे भिक्खु, ण तेसिं पडिसंजले । सरसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू ण संजले ॥ २४ ॥
कठिन शब्दार्थ - अक्कोसेज्जा - आक्रोश - गाली दे, परे - कोई, पडिसंजले - प्रति संज्वलन - क्रोध करे, सरिसो- सदृश, बालाणं - बालकों - अज्ञानियों के, ण संज संज्वलित न हो ।
भावार्थ - कोई व्यक्ति साधु को गाली देवे, बुरे वचन कह कर उसका अपमान करे, तो उस पर क्रोध नहीं करे, क्योंकि ऐसा करने से वह अज्ञानियों के सरीखा हो जाता है, इसलिए साधु क्रोध न करे ।
विवेचन अक्कोसेज्जा
'आक्रोश' शब्द तिरस्कार, अनिष्ट वचन, क्रोधावेश में आकर गाली देना आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है ।
बुद्धिमान् साधु को तत्त्वार्थ चिंतन में अपनी बुद्धि लगानी चाहिये, यदि आक्रोशकर्त्ता का आक्रोश सच्चा है तो उसके प्रति क्रोध करने की क्या आवश्यकता है? बल्कि यह सोचना चाहिये कि यह परम उपकारी मुझे हितशिक्षा देता है, भविष्य में ऐसा नहीं करूँगा । यदि आक्रोश असत्य है तो रोष करना ही नहीं चाहिये । गाली सुन कर वह सोचे - जिसके पास जो चीज होती है वही देता है। हमारे पास गालियाँ नहीं हैं इसलिए देने में असमर्थ हैं। इस प्रकार आक्रोश वचनों का उत्तर न देकर धीर, वीर एवं क्षमाशील अर्जुन मुनि की तरह जो उन्हें समभाव से सहता है, वही अत्यंत लाभ में रहता है।
• सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गाम-कंटगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा, ण ताओ मणसि करे ॥ २५ ॥
कठिन शब्दार्थ - सोच्चाणं - सुन कर, फरुसा - कठोर, भासा
भाषा, दारुणा
दारुण-असह्य, गामकंटगा ग्राम कण्टक कांटे की तरह चुभने वाली, तुसिणीओ - मौन रहे, उवेहेज्जा - उपेक्षा करे, ण मणसि करे
मन में भी द्वेष भाव न लाए।
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