Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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परीषह - परीषहों का स्वरूप - सत्कार पुरस्कार परीषह **********************************************
वेएज णिजरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं। जाव सरीरभेओ त्ति, जल्लं काएण धारए॥३७॥
कठिन शब्दार्थ - वेएज - प्राप्त करके, णिजरापेही - निर्जरापेक्षी - निर्जरा चाहने वाला, आरियं - आर्य, धम्मं - श्रुत चारित्र धर्म को, धम्मणुत्तरं - अनुत्तर (श्रेष्ठ), सरीरभेओ त्ति - शरीर विनाशं पर्यन्त, काएण - शरीर से, जल्लं - मैल को, धारए - सहन करे, वेदन करे।
भावार्थ - सर्व प्रधान आर्य, श्रुतचारित्र रूप धर्म प्राप्त कर के निर्जरा चाहने वाला साधु जब तक शरीर का नाश न हो, तब तक-जीवन पर्यंत, इस शरीर से मैल परीषह को समभावपूर्वक सहन करे।
१. सत्कार पुरस्कारपरीषह अभिवायणमन्भुट्ठाणं, सामी कुजा णिमंतणं। जे ताई पडिसेवंति, ण तेसिं पीहए मुणी॥३८॥
कठिन शब्दार्थ - अभिवायणं - अभिवादन, अन्भुट्ठाणं - अभ्युत्थान, सामी - राजा आदि द्वारा, णिमंतणं - निमंत्रण, पडिसेवंति - सेवन करते हैं, ण पीहए - स्पृहा-चाहना नहीं करे।
भावार्थ - जो साधु स्वतीर्थ या अन्यतीर्थी राजा आदि द्वारा किये गये नमस्कार, सत्कारसन्मान तथा. भिक्षा के लिए निमंत्रण आदि का सेवन करते हैं, उनकी साधु चाहना नहीं करे और उनकी प्रशंसा भी नहीं करे। - अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अण्णाएसी अलोलुए। .
रसेसु णाणुगिज्झिजा, णाणुतप्पिज पण्णवं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - अणुक्कसाई - अनुत्कशायी - सत्कार के लिए अनुत्सुक, अनुत्कषायीअल्प कषाय वाला, अणुकषायी - सत्कार आदि न करने वालों पर क्रोध न करने वाला अथवा सत्कार आदि प्राप्त होने पर अहंकार न करने वाला, अप्पिच्छे - अल्पेच्छ - थोड़ी इच्छा यात्रा, इच्छा रहित - निष्पृह, अण्णाएसी - अज्ञातैषी - अज्ञात - अपरिचित कुलों से आहार आदि की एषणा करने वाला, अलोलए - अलोलुप, रसेसु - रसों में, ण अणुगिज्झेजा - गृद्ध-आसक्त न हो, ण अणुतप्पेज - अनुताप (खेद) न करे, पण्णवं - प्रज्ञावान्।
भावार्थ - अल्प कषाय वाला, सत्कार सन्मान आदि की इच्छा न करने वाला, अज्ञात कुलों
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