Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - द्वितीय अध्ययन
से भिक्षा लेने वाला लोलुपता रहित बुद्धिमान् साधु सरस भोजन में आसक्ति न रखे और उसके न मिलने पर खेद नहीं करे तथा दूसरों का सत्कार-सम्मानादि उत्कर्ष देख कर ईर्षालु नहीं बने।
विवचेन - सत्कार का अर्थ है - पूजा प्रशंसा और पुरस्कार का अर्थ है - अभ्युत्थान, आसन प्रदान, अभिवादन-नमन आदि। सत्कार-पुरस्कार के अभाव में दीनता न लाना, सत्कार पुरस्कार की आकांक्षा न करना, दूसरों की प्रसिद्धि, प्रशंसा, यशकीर्ति, सत्कार सम्मान आदि देख कर मन में ईर्ष्या न करना, दूसरों को नीचा दिखा कर स्वयं प्रतिष्ठा या प्रसिद्धि प्राप्त करने की लिप्सा-चाहना नहीं करना, सत्कार पुरस्कार परीषह-जय है।
२०. प्रज्ञा परीवह से णूणं मए पुव्वं, कम्मा णाणफला कडा। जेणाहं णाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुइ॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - Yणं - निश्चय ही, मए - मैंने, पुव्वं - पूर्व जन्म में, कम्मा - कर्म, णाणफला - ज्ञान फल देने वाले अथवा, अणाणफला - अज्ञान फल देने वाले, कडा - किये हैं, अभिजाणामि - जानता हूँ, पुट्ठो - पूछे जाने पर, केणइ - किसी के द्वारा, कण्हुइ - किसी भी विषय में। ___ भावार्थ - निश्चय ही मैंने पूर्वजन्म में ज्ञान-फल देने वाले कर्म किये हैं, जिससे मैं सामान्य मनुष्य होते हुए भी किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी विषय में पूछा जाने पर ठीक-ठीक उत्तर देता हैं।
विवेचन - उपर्युक्त अर्थ प्रज्ञा के अतिशय की अपेक्षा से है और यही अर्थ इस प्रज्ञा परीषह में अधिक संगत होता है। टीकाकार ने अज्ञान के कर्मों की अपेक्षा भी इस गाथा का अर्थ दिया है, वह इस प्रकार है
“निश्चय ही पूर्व भव में मैंने अज्ञान फल वाले कर्म किये हैं, जिससे कि मैं किसी व्यक्ति द्वारा किसी विषय में पूछा जाने पर नहीं जानता - ठीक-ठीक उत्तर नहीं दे सकता हूँ।" .
अह पच्छा उइजति, कम्माऽणाण फला कडा। एवमस्सासि अप्पाणं, णच्चा कम्मविवागयं॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - अह पच्छा - इसके बाद, उइजंति - उदय में आयेंगे, कम्मविवागयंकर्म विपाक को, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, अस्सासि - आश्वासन देना चाहिये।
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