Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चतुरंगीय - मनुष्य जन्म की दुर्लभता
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कठिन शब्दार्थ - एगया - कभी, देवलोएसु - देवलोक में, णरएसु काये - असुर आदि काय में, अहाकम्मेहिं - यथाकर्म के अनुसार, गच्छइ भावार्थ - अपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार जीव कभी देवलोक में, कभी नरक में और कभी असुर योनि में उत्पन्न होता है ।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में कर्मों के फल का दिग्दर्शन किया गया है जीव जिस प्रकार का कर्म करता है उसी के अनुसार उसका फल भी वह भोगता है। शुभ कर्मों के विपाक से जीव कभी देवलोक में उत्पन्न होता है तो कभी अशुभ कर्मों के उदय से रत्नप्रभा आदि नरकों में यातनाएं भोगता है अर्थात् यह जीव जिस जिस प्रकार का आचरण करता है उसी के विपाकोदय के अनुसार वैसी ही योनियों में उसका जन्म होता है।
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एगया खत्तिओ होइ, तओ चंडाल बुक्कसो।
तओ कीडपयंगो य, तओ कुंथू - पिवीलिया ॥४ ॥
कीड
कठिन शब्दार्थ - खत्तिओ - क्षत्रिय, चंडाल चाण्डाल, बुक्कस - बुक्कस कीट, पयंगो - पतंग, तओ तदनन्तर, कुंथु - कुन्थु, पिवीलिया - पिपीलिका- चींटी। भावार्थ • मनुष्य जन्म योग्य कर्म के उदय आने पर यह जीव कभी क्षत्रिय होता इसके *. बाद कभी चंडाल और बुक्कस (वर्णसंकर) होता है, कभी कीड़ा और पतंगिया तथा कभी कुन्थु और चींटी |
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विवेचन उक्त गाथा में उल्लेख किये गये क्षत्रिय शब्द से उच्च जाति और चण्डाल, बुक्कस शब्द से नीच और वर्ण संकर जाति की सूचना दी गई है। कीट, पतंग, कुंथु, पिपीलिका से समस्त तिर्यग् जाति के जीवों का ग्रहण अभीष्ट है। यह जीव स्वकृत कर्मों के प्रभाव से चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण करता है। देव और नरक का उल्लेख तीसरी गाथा में किया गया है एवं मनुष्य और तिर्यंच का कथन इस चौथी गाथा में है। इन्हीं चारों गतियों के समुदाय का नाम 'संसार चक्र' है।
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सव्वट्ठे - सर्व अर्थों में, व
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एवमावजोणी, पाणिणो कम्म-1 - किव्विसा ।
ण णिव्विज्जंति संसारे, सव्वट्ठेसु व खत्तिया ॥५ ॥
कठिन शब्दार्थ - आवट्ट आवर्तन करते हुए, जोणीसु - योनियों में, पाणिणो
प्राणी, कम्म किव्विसा - कर्मों से किल्विष - मलीन, ण णिव्विज्वंति - निवृत्त नहीं होते,
जिस प्रकार, खत्तिया - क्षत्रिय ।
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नरक में, आसुरे
जाता है।
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