Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चतुरंगीय - श्रद्धा परम दुर्लभ
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श्रुतिधर्म की दुर्लभता माणुस्सं विग्गहं लटुं, सुई धम्मस्स दुल्लहा। जं सोच्चा पडिवजति, तवं खंतिमहिंसयं ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - माणुस्सं - मनुष्य का, विग्गहं - शरीर, लद्धं - प्राप्त करके, धम्मस्स - धर्म का, सुई - श्रवण, दुल्लहा - दुर्लभ, जं - जिसको, सोच्चा - सुन कर, पडिवजंति - ग्रहण करते हैं, तवं - तप को, खंतिं - क्षमा को, अहिंसयं - अहिंसा को।
भावार्थ - मनुष्य सम्बन्धी शरीर पा कर भी धर्म का श्रवण करना दुर्लभ है, जिसे सुन कर जीव तप, क्षमा और अहिंसा अंगीकार करते हैं। - विवेचन - प्रस्तुत गाथा में सूत्रकार ने मनुष्य जन्म के प्राप्त हो जाने पर भी धर्म श्रवण की दुलर्भता बतायी है क्योंकि यह जीव विषय पोषक राग रंग के श्रवण के लिए तो बिना किसी की प्रेरणा के स्वयं ही उद्यत रहता है परन्तु सौभाग्यवश जहाँ धर्म के श्रवण करने का अवसर आता है वहाँ पर सुज्ञ पुरुषों की प्रेरणा के होते हुए भी इसको प्रमाद-आलस्य आ दबाता है जिसके कारण उसकी इस ओर रुचि नहीं होती। अतः पुण्य संयोग से मनुष्य जन्म के मिल जाने पर भी उसमें धर्म की श्रुति और भी दुर्लभ है।
धर्म श्रवण से ही मनुष्य के हृदय में तप, क्षमा और अहिंसा आदि सद्गुणों का जन्म होता है। अतः इसका प्राप्त होना निस्संदेह दुर्लभ है। __ यहाँ पर तप से द्वादशविध तप, क्षमा से दशविध यतिधर्म और अहिंसा से साधु के पांच महाव्रतों का ग्रहण अभिप्रेत है। . श्रवण करने के बाद श्रद्धा उत्पन्न होती है अतः अब श्रद्धा की दुर्लभता के विषय में कहते हैं -
श्रद्धा परम दुर्लभ आहच्च सवणं लद्धं, सद्धा परम-दुल्लहा। सोच्चा णेयाउयं मग्गं, बहवे परिभस्सइ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - आहच्च - कदाचित्, सवणं - धर्म का श्रवण, लद्धं - प्राप्त करके, . सद्धा - श्रद्धा, परम दुल्लहा - परम दुर्लभ, णेयाउयं - न्याय युक्त, मग्गं - मार्ग को,
बहवे - बहुत से, परिभस्सइ - भ्रष्ट हो जाते हैं। .
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