________________
७४
उत्तराध्ययन सूत्र - चौथा अध्ययन aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa***
विवेचन - प्रमाद का मूल कारण राग और द्वेष हैं। अतः प्रस्तुत गाथा में द्वेष त्याग का उपदेश दिया गया है। अब अनुकूल स्पर्शों पर राग-विजय का उपदेश देते हैं।
राग-विजय मंदा य फासा बहुलोहणिज्जा, तहप्पगारेसु मणं ण कुज्जा। रक्खेज कोहं विणएज माणं, मायं ण सेवेज पहेज लोहं॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - मंदा - मंद, बहुलोहणिजा - बहुत लोभनीय, तहप्पगारेसु - तथा प्रकारों में, मणं - मन को, ण कुजा - न करे, रक्खिज - दूर करे, कोहं - क्रोध को, विणएज - टाल देवे, माणं - मान को, मायं - माया को, म सेवेज - सेवन न करे, पहेज - छोड़ दे, लोहं - लोभ को। ____ भावार्थ - शब्दादि विषय, विवेक-बुद्धि को मन्द करने वाले और बहुत ही लुभाने वाले हैं। मुमुक्षु को इस प्रकार के आकर्षक शब्दादि विषयों में मन न लगाना चाहिए। उनमें रागपूर्वक प्रवृत्ति न करनी चाहिए। उसे क्रोध को शान्त करना चाहिए। मान को दूर करना चाहिये। माया का सेवन नहीं करना चाहिये और लोभ का त्याग करना चाहिये।
विवेचन - शब्दादि अनुकूल स्पर्शों की प्रलोभनता में विवेकी साधु को अपना मन कभी न लगाना चाहिये तथा क्रोध, मान, माया और लोभ का भी परित्याग कर देना चाहिये। क्रोधादि चारों कषाय राग और द्वेष के ही अंतर्गत है। क्रोध और मान द्वेष के अन्तर्गत है एवं माया तथा लोभ राग के अंतर्गत है। अतः इनको जीत लेने से मोह के सभी गुण (प्रकार-भेद) जीत लिये 'जाते हैं।
सद्गुणों की आकांक्षा जे संखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज-दोसाणुगया परज्झा। एए अहम्मेत्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीरभेए॥१३॥ त्ति बेमि॥
॥ असंखयं णामं चउत्थं अज्झयणं समत्तं॥ कठिन शब्दार्थ - संखया - संस्कृत, तुच्छ - निःसार, परप्पवाई - परप्रवादी,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org