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३२ -- यह पारिणामिक भाव है ।
३३- इसका संस्थान अज्ञात है ।
३४- देश बंध तथा सर्व बंध का लेश्या सम्बन्धी पाठ नहीं है ।
जीव के प्रयोग में आने वाले पुद्गलों स्कंधों की आठ वर्गणाए ं हैं
५ - कार्मणवर्गणा
१ - औदारिकवर्ग ना २- - वैक्रियवर्गणा ३—आहारकवर्गणा
६ – मनोवर्गणा
४- तेजसवर्गा
७ – वचनवर्गणा
८ - श्वासोच्छ्रासवर्गणा
इन आठ वर्गणाओं में से तैजसवर्गा के साथ द्रव्यलेश्या का सम्बन्ध है ।
भावलेश्या क्या है ?
१ – भावलेश्या जीव परिणाम है 1 ( देखें विषयांकन ४१ )
२ – भावलेश्या अरूपी है । यह अवर्णी, अगंधी, अरसी तथा अस्पर्शी है ।
( '४२ )
३- भावलेश्या अगुरुलघु है । ( ४३ )
४ - विशुद्धता - अविशुद्धता के तारतम्य की अपेक्षा से इसके असंख्यात स्थान है ।
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( '४४ )
५-- -यह जीवोदय निष्पन्न भाव है । ( ४६ '१ )
६- आचार्यों के कथनानुसार भाव लेश्या क्षय-क्षयोपशम, उपशम भाव भी है । ( *४६°२ )
७- प्रथम की तीन लेश्याएं अधर्म लेश्याएं कही गयी है तथा पीछे की तीन धर्म लेश्याएं कही गई है । ( पृ० १६ )
८- प्रथम की तीन भावलेश्या संक्लिष्ट है तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या असं क्लिष्ट है | ( पृ० १७ )
E - प्रथम की तीन भावलेश्या अप्रशस्त है तथा पश्चात् तीन भाव लेश्या प्रशस्त है । ( पृ० १८ )
१० - प्रथम की तीन भावलेश्या दुर्गति की हेतु कही गई है तथा पश्चात् की तीन भावश्या सुगति की हेतु कही गई है ।
११ - परिणाम की अपेक्षा प्रथम की तीन भाव लेश्या अविशुद्ध है तथा पश्चात् की तीन भावलेश्या विशुद्ध है । ( पृ० १७ )
१२ - नव पदार्थ में भावलेश्या - जीव आस्रव तथा निर्जरा है ।
१३ – आस्रव - योग आस्रव है ।
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