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नगार
ध्याय
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यहां पर पहले यह बता देना उचित है कि मुमुक्षु तीन प्रकारके होते हैं। एक तो परोपकारको प्रधान रखकर स्वोपकार करनेवाले, दूसरे स्वोपकारको प्रधान रखकर परोपकार करनेवाले, तीसरे केवल स्वोपकार करनेवाले । इनमेंसे पहले प्रकारके मुमुक्षके विषय में आर्ष आगममें ऐसा कहा है।
स्वदुःखनिर्घृणारम्भाः परदुःखेषु दुःखिताः । निर्व्यपेक्षं परार्थेषु चद्धकक्षा मुमुक्षषः ॥ इति ।
मुमुक्षु पुरुष अपने दुःखों को दूर करनेकेलिये अधिक प्रयत्न नहीं करते किंतु दूसरोंके दुःखोंको देखकर अधिक दुःखी होते हैं। और इसीलिये वे किसी भी प्रकारकी अपेक्षा ने रखकर परोपकार करनेमें दृढ़बाके साथ सदा तत्पर रहते हैं ।
दूसरे भेदके विषय में ऐसा कहा है
आदहिदं कादव्वं जइ सकई परहिंदं च कादव्वं । आदहिदपरहिदादो आदहिदं सुठु कादव्वं ॥ इति ।
अपना हित सिद्ध करना चाहिये । फिर यदि हो सके तो परहित भी सिद्ध करना चाहिये । किंतु आत्माहत और परहित इन दोनोंमें आत्महितको अच्छी तरह सिद्ध करना चाहिये ।
तीसरे भेदके विषयमें ऐसा कहा है:
परोपकृतिमुत्सृज्य स्त्रोपकारपरो भव ।
उपकुर्वन् परस्याज्ञो दृश्यमानस्य लोकवत् ॥ इति ।
परोपकारको छोड़कर अपनी आत्माका उपकार कर । क्योंकि अदृश्यमान परके उपकार करनेवालेको साधारण लोगोंकी तरह अज्ञ ही समझना चाहिये ।
TATATTATO
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