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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
वर्णीजी महराजके प्रथम दर्शनका सौभाग्य १९२२ में मिला था। आपकी सारगर्भित सरल वाणी ने हृदय मोह लिया तभीसे मैं तो श्रद्धा में पग गया । सेठ मूलचन्द्र शराफकी पात्रता तथा जताराकी नजदीकीके कारण बरुअासागरमें आपके चरण पड़े । एकान्तमें ध्यान प्रेमी होनेके कारण पासकी छोटी पहाड़ीके भाग्य खुले और सराफजीके धनका कुटीरमें लग कर सदुपयोग हुआ। तथा भोले अशिक्षित, निर्धन, अतएव सबसे ठगे गये इस प्रा-तके लोगोंको उनका सच्चा हितू मिला । यहांके मनुष्य मात्रको आपसे सदाचार और शिक्षाकी प्रेरणा मिली है। अतः मैं उनके चरणोंमें श्रद्धा
जलि अर्पित करता हूं। वरुणासागर ]
- ( बाबू ) रामस्वरूप जैन
बाबाजी
आज ७५ वर्षकी उम्रके बाद भी उनमें युवकों जैसा उत्साह है, बालकों जैसी सरलता हैं; परन्तु वृद्धों जैसा प्रमाद उनके पास लेशमात्र भी नहीं है। उनकी लगन अद्भुत है। वे वक्ता नहीं स्वान्तःसुखाय कार्यकर्ता हैं और हैं, समाजके नेता भी । वह महात्मा हैं। वाणीमें जहां जादू जैसा असर है वहां चुम्बक जैसा अाकर्षण भी है। उनका क्षेत्र व्रतियों जैसा संकुचित नहीं । क्या आध्यात्मिक क्या सामाजिक क्या राजनैतिक सभी कार्यों में लोक संग्रहकी अभिरुचि रखते हैं । यदि राजनीतिकी श्रोर उनका झुकाव हुआ होता तो वे दृढ़तापूर्वक कार्य करके जैनसमाजका ही कायाकल्प न करते अपितु राजनैतिक क्षेत्रमें विशेष स्थान पाते ।
___ वह दयाकी प्रतिमूर्ति हैं । कपट तो उनको एक नजर भी नहीं देखने पाया है । नियमित और सधे हुए वाक्य ही बोलते हैं। उनके कथनमें बनावटीपनकी गन्ध भी नहीं होती है। उसमें एक प्रेरणा होती है क्योंकि वह उनकी स्वकीय अनुभूतिका सच्चा निखार है। मित्रके प्रति उनकी जहां प्रेम भावना होती है वहीं शत्रुके प्रति केवल उदासीनता रहती है। वे स्वप्नमें भी शत्रुका बुरा नहीं चाहते । कहते हैं "अरे भैया ऐसो करें से पैले अपनो इहलोक परलोक बिगड़े। शत्रुके विनाशकी भावना हमें नहीं करना चाहिए अपितु उसको सुबुद्धि प्राप्ति की कामना करनी चाहिए। जी से वह भी अनुकूल होके हमें शान्ति दे और स्वयं भी आपतसे मक्ति पाए।"
दया
आजाद हिन्द फौजकी सुरक्षाके लिए अर्थ-संचयार्थ म० प्रा० के प्रधान नेता दुर्गाशङ्कर मेहता जबलपुर आये हुए थे । एक सभाका आयोजन हुआ, वक्ताओंके मुखसे उनकी व्यथाको सुन कर
चालीस