Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - वचन विनय
सारांश यह है कि गुरुओं के समीप तो उसी आसन से बैठना चाहिये जो कि शास्त्र सम्मत और सभ्य व्यक्तियों द्वारा अनुमोदित हो चुका है तथा जिससे गुरुजनों की अवज्ञा - अनादर - आशातना न हो ।
वचन विनय आयरिएहिं वाहिंतो, तुसिणीओ ण कयाइ वि ।
पसायपेही णियागट्ठी, उवचिट्ठे गुरुं सया ॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - आयरिएहिं - आचार्यों के द्वारा, वाहिंतो - बुलाया हुआ, तुसिणीओमौन - चुपचाप, पसायपेही - प्रसादप्रेक्षी - कृपाकांक्षी, णियागट्ठी - नियागार्थी - मोक्ष की इच्छा रखने वाला, उवचिट्ठे - ठहरे - उपस्थित रहे, गुरुं - गुरु के पास, सया
सदा ।
भावार्थ - आचार्य महाराज द्वारा बुलाए जाने पर विनीत शिष्य को चाहिए कि वह कभी भी चुपचाप बैठा न रहे, किन्तु गुरु की कृपा चाहने वाला, मोक्षार्थी साधु सदैव गुरु महाराज के समीप विनय के साथ उपस्थित होवे ।
आलवंते लवंते वा, ण णिसीएज्ज कयाइ वि ।
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लवंते
चइत्ता आसणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥२१॥ कठिन शब्दार्थ आलवंते एक बार बुलाने पर, णिसीएज बैठा रहे, चइत्ता ( चइऊण) धैर्यवान्, जओ जत्तं - गुरुओं के वचन को यतना पूर्वक, पडिस्सुणे - स्वीकार करे ।
छोड़ कर, आसणं आसन को,
भावार्थ - गुरु महाराज के एक बार बुलाने पर अथवा बार-बार बुलाने पर कभी भी बैठा न रहे, किन्तु विनीत धैर्यशील साधु आसन छोड़ कर गुरु महाराज के वचनों को यतना पूर्वक सावधान हो कर सुने ।
- आसणगओ ण पुच्छिज्जा, णेव सिजागओ कया ।
आगम्मुक्कुडुओ संतो, पुच्छिज्जा पंजलिउडो॥२२॥
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कठिन शब्दार्थ - आसणगओ आसन पर बैठा हुआ, ण नहीं, पुच्छिज्जा - पूछे, णेव सिज्जागओ नही शय्या पर बैठा हुआ, आगम्म - समीप आकर, उक्कुडुओ संतो उत्कुटुक आसन से बैठता
पंजलिउडो हुआ,
हाथ जोड़ कर ।
* पाठान्तर
चइऊण
बार-बार बुलाने पर,
धीरो
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