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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : उनके सदृश ही रूपवान सिंहासन आदि सहित तीन मूर्तियें देवतागण बनाते हैं । ऐसा करनेका यह कारण है कि सर्व दिशाओं में बैठे हुए देवताओं आदि को ऐसा होने से यह विश्वास हो जाता है कि प्रभु स्वयं हमारे सामने बैठ कर ही उपदेश दे रहे हैं।
(९) जहां जहां प्रभु विराजते हैं वहां देवतागण जिनेश्वर के ऊपर अशोक वृक्ष रचते है। वह अशोकवृक्ष ऋषभदेवस्वामी से लगाकर श्री पार्श्वनाथस्वामी तक अर्थात् तेवीस तीर्थंकरों के ऊपर उनके शरीर के मान से बारहगुना ऊंचा रचा जाता है और महावीरस्वामी ऊपर बत्तीस धनुष ऊंचा रचा जाता है। कहा है कि:उसभस्स तिन्नि गाउय,बत्तीसधणुणि वद्धमाणस्स। सेसजिणाणमसोउ, शरीरउ बारसगुणो ॥१॥
भावार्थ:-ऋषभदेव स्वामी पर तीन गाउ ऊँचा अशोकवृक्ष होता है, वर्धमानस्वामी ( महावीरस्वामी ) पर बत्तीस धनुष ऊँचा होता है, और अन्य जिनेश्वरों पर उनके शरीर से बारहगुना ऊँचा होता है। ___ यहां पर शंका होती है कि " आवश्यक चूर्णि में श्री महावीरस्वामी के समवसरण के प्रस्ताव में कहा है किअसोगवरपायवं जिणउच्चताउ बारसगुणं सक्को विउवइत्तिइन्द्रने जिनेश्वर की ऊंचाई से बारहगुना ऊँचा अशोक नाम