________________
श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : - (९) उपरोक्त स्थल में अनावृष्टि-सर्वथा जल का अभाव नहीं होता कि जिस से धान्यादिक की उत्पत्ति ही न हो।
(१०) उस भूमि में दुर्भिक्ष-दुष्काल नहीं होता।
(११) अपने राज्य के लश्कर का भय (हुल्लड़ आदि) तथा अन्य राज्य के साथ संग्रामादिक होने का भय उत्पन्न नहीं होता।
इस प्रकार कर्मक्षयजन्य ११ अतिशय समझना चाहिये । - अब देवताओं द्वारा किये गये उन्नीश अतिशय इस प्रकार हैं।
(१) प्रभु जिस स्थल पर विचरते हैं उस जगह आकाश में देदीप्यमान कांतिवाला धर्मप्रकाशक धर्मचक्र । फिरता रहता है ( आगे आगे चलता रहता है)। - (२) आकाश में श्वेत चामर दोनों ओर चलते हैं ।
(३) आकाश में निर्मल स्फटिक मणि निर्मित पादपीठ सहित सिंहासन चलता रहता है ।
(४) आकाश में भगवान के मस्तक पर तीन छत्र रहते हैं।
(५) आकाश में रत्नमय धर्मध्वज प्रभु के आगे आगे चलता है। सर्व ध्वज की अपेक्षा यह ध्वज अत्यंत बडा होने से इसे इन्द्रध्वज भी कहते हैं।