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व्याख्यान १
: १३ __ (४) दया के अद्वितीय निधि भगवान जिस जिस स्थल को विहार करते हैं उस उस स्थलपर सर्व दिशाओं में पचीश पचीश योजन और ऊपर नीचे साड़े बारह साड़े बारह योजन इस प्रकार पांच सो गाउ तक पहले के होनेवाले ज्वरादि रोगों का नाश हो जाता है और नये रोग उत्पन्न नहीं हो सकते हैं।
(५) उपरोक्तानुसार भगवान की स्थिति से पांचसो गाउ तक प्राणियों के पूर्वभव में बांधे हुए और जाति से उत्पन्न हुए (स्वाभाविक) वैर परस्पर बाधाकारी नहीं होते।
(६) उपरोक्तानुसार पांचसो गाउ तक इतियों (सात प्रकार के उपद्रव), तथा धान्यादि को नाश करनेवाली टीडि, तोते, चूहें आदि उत्पन्न नहीं होते ।
(७) उपरोक्त भूमि में महामारी, दुष्ट देवतादि के उत्पात ( उपद्रव ) और अकाल मृत्यु नहीं होती।
(८) उपरोक्त भूमि में अतिवृष्टि अर्थात् लगातार निरन्तर वर्षा नहीं होती कि जिस से धान्य मात्र नष्ट हो जाय ।
१ प्रत्येक दिशा में पचीश पचीश योजन अर्थात् सो सो गाउ मीलकर चार दिशा के चारसो गाउ तथा ऊपर और नीचे साढ़े बारह साढ़े बारह योजन अर्थात् पचास पचास गाउ मील कर सो गाउ । ये सब मीलकर पांच सो गाउ हुए । इसी प्रकार ग्यारहवें अतिशय तक समझना चाहिये ।