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व्याख्यान १: " सरो नत्थि-सर नहीं" इस वाक्य द्वारा अपनी तीनों स्त्रियों को समझा दिया। ___एक भील जेष्ठ महिने में उसकी तीनों स्त्रियों को साथ लेकर किसी ग्राम को जाता था। मार्ग में एक स्त्रीने उसको कहा कि ' हे स्वामी ! आप सुकंठ से गायन करें कि जिसको सुनने से मुझे इस मार्गका श्रम तथा सूर्यकी गर्मी दुःसह न हो।' दूसरी स्त्रीने कहा कि स्वामी ! तुम जलाशय में से कमल की सुगन्धमिश्रित शीतल जल लाकर मेरी तृष्णा का निवारण करो' तीसरीने कहा कि 'हे पति ! मुझे मृगका मांस लाकर दो कि जिससे मेरी क्षुधा का निवारण हो ।' इस प्रकार उन तीनों स्त्रियों के वचन सुनकर उस भीलने 'सरो नत्थि ' इस एक ही वाक्य से उन तीनों को उत्तर दिया। जिससे पहली स्त्रीने समझा कि 'मेरे स्वामी का कहना है कि मेरा 'सरी' अर्थात् स्वर-सुमधुर कंठ नहीं है इस लिये किस प्रकार गान करूं ?' दूसरी ने विचार किया कि 'सरो अर्थात् सरोवर तो यहां आसपास नहीं तो फिर जल कहाँ से लाऊं?' तीसरीने समझा कि 'सरो अर्थात शर-बाण नहीं, तो फिर मृग को किस प्रकार मार कर उसका मांस लाया जा सके ?"
इस प्रकार भील के एक ही वाक्य से उन तीनों स्त्रियों को अपने प्रश्नों का उत्तर मिल जाने से वे संतुष्ट हो गई तो फिर भगवान की वाणी तो उपमारहित तथा अकथनीय