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।।श्रीः।। श्रीशिङ्गभूपालविरचितः रसार्णवसुधाकरः 'शशिप्रभा'हिन्दीव्याख्यासमन्वितः
प्रथमो विलासः शृङ्गारवीरसौहार्द मौग्यवैयात्यसौरभम् ।
लास्यताण्डवसौजन्यं दाम्पत्यं तद् भजामहे ।।१।।
मङ्गलाचरण- [अपने रसाणसुधाकर नामक नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति के लिए शास्त्रकार ने सर्वप्रथम मङ्गलाचरण के रूप में पार्वती तथा शिव के दाम्पत्य और विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की प्रार्थना किया है।]
___मैं (शिङ्गभूपाल) पार्वती तथा शिव के उस दाम्पत्य की वन्दना करता हूँ जिसमें (पार्वती से सम्बन्धित) शृङ्गार तथा (शिव से सम्बन्धित) वीर (रस) मित्रतापूर्वक निवास करते हैं
और जो (पार्वती से सम्बन्धित) मुग्धता और (शिव से सम्बन्धित) औद्धत्य से शोभायमान है तथा जिसमें (पार्वती का) लास्य तथा (शिव का) ताण्डव (नृत्य) सौजन्यतापूर्वक विद्यमान है।।१।।
वीणाङ्कितकरां वन्दे वाणीमेणीदृशं सदा।
सदानन्दमयीं देवीं सरोजासनवल्लभाम् ।।२।।
वीणा से शोभायमान हाथों वाली, हरिण के समान नेत्रों वाली, सर्वदा आनन्द से युक्त तथा कमलासन से प्रेम करने वाली वाग्देवी (सरस्वती) की मैं सर्वदा वन्दना करता हूँ।।२।।
अस्ति किञ्चित्परं वस्तु परमानन्दकन्दलम् ।
कमलाकुचकाठिन्यकुतूहलिभुजान्तरम् ।।३।।
लक्ष्मी के स्तनों की कठोरता के द्वारा प्रशंसित भुजाओं वाला तथा परमानन्दमय होने के कारण मधुर (स्वरूप वाला विष्णु रूपी) कोई परम वस्तु (परमब्रह्म) है।।३॥
तस्य पादाम्बुजाज्जातो वर्णो विगतकल्मषः।
यस्य सोदरतां प्राप्तं भगीरथतपःफलम् ।।४।।
उस (विष्णु रूपी परम ब्रह्म) के चरण-कमल से निष्कलुष वर्ण (शूद्र) उत्पन्न हुआ। (उसी चरण-कमल से) भगीरथ की तपस्या के फल (रूपी गङ्गा जी) ने जिस (वर्ण की)