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रसार्णवसुधाकरः
प्रकाश - सर्वप्रकाश और नियत प्रकाश भेद से प्रकाश दो प्रकार का होता
है।।२०५पू.।।
(तत्र सर्वप्रकाशम्) -
सर्वप्रकाशं सर्वेषां स्थितानां श्रवणोचितम् ।। २०६।।
सर्वप्रकाश - सर्वप्रकाश (कथावस्तु रङ्गमञ्च पर) स्थित सभी (पात्रों) द्वारा श्रवणीय होती है।।२०५उ.।।
(नियतप्रकाशम्) -
द्वितीयं तु स्थितेष्वप्येष्वेकस्य श्रवणोचितम् ।
नियत प्रकाश- नियत प्रकाश रङ्गमञ्च पर विद्यमान सभी पात्रों में से एक पात्र के सुनने योग्य होता है ।। २०७पू.।।
( नियतप्रकाशस्य द्वैविध्यम् ) -
द्विधा विभाव्यतेऽन्यच्च जनान्तमपवारितम् ।। २०७ ।। नियतप्रकाश के भेद- अन्य (नियत प्रकाश) वाली (कथावस्तु) दो प्रकार की होती है- जनान्त (जनान्तिक) और अपवारित ।। २०५३ ।।
(तत्र जनान्तिकम् ) -
त्रिपताकाकरेणान्यानपवार्यान्तरा
कथाम् ।
अन्येनामन्त्रणं यत् स्यात् तज्जनान्तिकमुच्यते ।। २०८ ।।
जनान्तिक- त्रिपताका-कार हाथ से ओट करके अन्य (पात्रों) से छिपकर बीच की कथावस्तु की जो अन्य (दूसरे पात्र) से मन्त्रणा की जाती है वह जनान्तिक कहलाता है ।। २०८ ॥
(अथापवारितम् )
रहस्यं कथ्यतेऽन्यस्य परावृत्यापवारितम् ।
अपवारित- जो लौटकर अन्य (दूसरे पात्र) के रहस्य (गूढ़ बात) को कहा जाता है वह अपवारित है ।। २०९५. ।।
(अङ्कान्ते पात्राणां निष्क्रमणम् )
इदं श्राव्यं च दृश्यं च प्रविश्य सुसमाहितैः । । २०९।। पात्रैर्निष्क्रमणं कार्यमङ्कान्ते सममेव हि ।
अङ्क के अन्त में पात्रों का निष्क्रमण- अङ्क के अन्त में प्रवेश करके इस श्रव्य और दृश्य (असूच्य कथावस्तु) को (सङ्केतित) करना चाहिए और वहाँ ( पहले से ) इकट्ठे अन्य पात्रों के साथ ही निष्क्रमण करना चाहिए (निकल जाना चाहिए ) ।। २०९उ. - २१०पू.।।