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रसार्णवसुधाकरः
(अथ भोगिनिनामकरणम् )- ---
भोगवती कान्तिमती कमला कामवल्लरी ।।३४१।।
इरावती हंसपदेत्यादिनाम्ना तु भोगिनी ।
भोगिनियों का नामकरण- भोगिनी (विषय वासनाओं में लिप्त) स्त्रियों को भोगवती, कान्तिमती, कमला, कामवल्लरी, इरावती, हंसपदा इत्यादि नाम से अभिहित किया जाना चाहिए।।३४१उ.-३४२पू.।।
(अथ त्रैवर्णिकनामकरणम् )
विप्रक्षत्रविशः शर्मवर्मदत्तान्तनामभिः ।।३४२।।
विप्र क्षत्रिय और वैश्य का नामकरण- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के नाम के अन्त में क्रमश: शर्म, वर्म औद दत्त लगना चाहिए।।३४२उ.।।
(अथ विद्याधरनामकरणम् )
शिखण्डाङ्गदचूडान्तनाम्ना विद्याधराधिपाः ।
विद्याधरों का नामकरण- विद्याधरों का शिखण्ड, अङ्गद और चूड़ अन्त वाला नाम रखना चाहिए।३४३पू.।।
(अथ कापालिकनामकरणम् )
कुण्डलानन्द घण्टान्तनाम्ना कापालिका जनाः ।।३४३।। (कापालिकानामकरणम् )
योगसुन्दरिका वंशप्रभा विकटमुद्रिका ।
शाकेयूरिकेत्यादिनाम्ना कापालिकास्त्रियः ।।३४४।।
कापालिक तथा कापालिकाओं का नामकरण- कपालिकों का कुण्डल, आनन्द और घण्ट से अन्त होने वाला नामकरण करना चाहिए और कापालिका स्त्रियों का योगसुन्दरिका, वंशप्रभा, विकटमुद्रिका, शङ्खकेयूरिका इत्यादि नाम रखना चाहिए।।३४३उ.-३४४॥
(अथ सुवासिनीनामकरणम् )
आनन्दिनी सिद्धिमती श्रीमती सर्वमङ्गला ।
यशोवती पुत्रवतीत्यादिनाम्ना सुवासिनी ।।३४५।।
सुवासिनी स्त्री का नामकरण- सुवासिनी स्त्री आनन्दिनी, सिद्धिमती, श्रीमती, सर्वमङ्गला, यशोमती, पुत्रवती इत्यादि नामों से अभिहित की जानी चाहिए।३४५॥
(अथ सत्काव्यप्रशंसा)
इत्यादि सर्वमालोच्य लक्षणं कृतबुद्धिना । कविना कल्पितं काव्यचन्द्राक प्रकाशते ।।३४६।।