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तृतीयो विलासः
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सत्काव्यप्रशंसा- इन सभी लक्षणों की समालोचना करके प्रत्युत्पन्न बुद्धि वाले कवि द्वारा निर्मित काव्य (रूपक) सूर्य और चन्द्रमा के रहने तक (अनन्त-काल तक) चमकता रहता है।।३४६॥
(ग्रन्थोपसंहारः)
लक्ष्यलक्षणनिर्माणविज्ञानकृतबुद्धिभिः ।
परीक्ष्यतामयं ग्रन्थो विमत्सरमनीषया ।।३४७।। ग्रन्थ का उपसंहार
उदाहरण सहित लक्षण के निर्माण-विज्ञान में कृत बुद्धि वाले (विद्वानों) द्वारा विमत्सर (ईर्ष्या से रहित) कामना से इस ग्रन्थ की परीक्षा की जानी चाहिए।।३४७॥
भरतागमपारीणः श्रीमान् शिङ्गमहीपतिः ।
रसिकः कृतवानेवं रसार्णवसुधाकरः ।।३४८।।
भरतवेद (नाट्यवेद) के सुविज्ञ और रसिक श्रीसम्पत्र शिङ्गभूपाल ने इस प्रकार (इस) रसार्णवसुधाकर की रचना किया है।।३४८॥
संरम्भादनपोतशिङ्गनपतेर्याटीसमाटीकने निःसाणेषु धणं धणं धणमिति ध्वानानुसन्यायिषु । मोदन्ते हि रणं रणं रणमिति प्रौढास्तदीया भटाः
भ्रान्तिं यान्ति तृणं तृणं तृणमिति प्रत्यर्थिपृथ्वीभुजः ।। ३४९।।
अनपोत शिङ्गभूपाल के युद्ध के कारण आक्रमण में जाने पर निःसाण (लोहा पीटने की घान) पर धण-धण इस प्रकार की ध्वनि का अनुसन्धान करने पर उस (शिङ्गभूपाल) के प्रौढ योद्धा (धण धण धण को) रण रण रण यह (समझकर) आनन्दित होते हैं और शत्रु राजा (के योद्धा) तृण तृण तृण यह (समझकर) भ्रम में पड़ जाते हैं।।३४९॥
मत्वा यात्रा तुलायां लघुरिति धरणी सिंहभूपालचन्द्रे सृष्टे तत्रातिगुळ तदुपनिधितया स्थाप्यमानः क्रमेण । चिन्तारलौघकल्पगुमततिसुरभीमण्डलैः पूरितान्ताप्यूवं नीता लघिम्मा तदरिकुलशतैः पूतिऽद्यापि सा द्यौः ।।३५०।। ॥इति श्रीमदान्त्रमण्डलापीयरप्रतिगण्डभैरवमीमदनपोतनरेन्द्रनन्दनभुजबलभीमनीसिंहभूपालविरचिते रसार्णवसुमाकरनाम्नि नात्या
___ लहारशास्त्र भावकोल्लासो नाम तृतीयो विलासः।'
विधाता ने तराजू पर पृथ्वी को (घुलोक) से हल्का समझकर शिङ्गभूपाल रूपी चन्द्रमा को बनाकर तथा उस (शिङ्गभूपाल) में क्रमश: अत्यन्त भारी धरोहर के रूप से