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रसार्णवसुधाकर:
स्थापित चिन्तामणि की वृद्धि वाले कल्पवृक्ष के समूह की सुगन्ध-मण्डल से पूर्ण करके पृथ्वी को लघुता से ऊपर उठाया (इस प्रकार पृथ्वी द्युलोक से भारी हो गयी)। अब ( उस द्युलोक के हल्केपन को उस (शिङ्गभूपाल) के (युद्ध में मारे गये) सैकड़ों (असंख्य ) शत्रुओं के समूहों द्वारा पूरा किया जा रहा है ।। ३५० ।।
।। इस प्रकार आन्ध्र देश के भीषण युद्ध में प्रचण्ड भैरव की कान्ति वाले राजा श्री अनपोतराज को आनन्दित करने वाले (पुत्र) भुजाओं के बल में भीम के समान श्रीशिंगभूपाल द्वारा विरचित रसार्णवसुधाकर नामक नाट्यालङ्कार शास्त्र में भावकोल्लास नामक तृतीये विलास समाप्त । ।
।। समाप्तश्चायं ग्रन्थः । ।