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रसार्णवसुधाकरः
एवमादिप्रकारेण योज्या निर्देशयोजना ।। ३२९ ।। लोकशास्त्राविरोधेन विज्ञेया वाक्यकोविदैः ।
इत्यादि इस प्रकार से निर्देश की योजना करनी चाहिए जो लोक तथा शास्त्र के अनुसार वाक्य- कोविदों द्वारा जाना ( कहा गया है ।। ३२९उ - ३३०पू.।।
अथ नामपरिभाषा --
अनुक्तनाम्नः प्रख्याते कञ्चुकिप्रभृतेरपि ।। ३३० ।। इतिवृत्ते कल्पिते तु नायकादेरपि स्फुटम् । रसवस्तूपयोगीनि कविर्नामानि कल्पयेत् ।। ३३१ ।।
(३) नाम- परिभाषा - प्रख्यात तथा कल्पित इतिवृत्त में अनुक्त नाम ( पूज्य होने के कारण नाम न लिए जाने वाले कच्चुकी इत्यादि तथा नायिका इत्यादि का रस तथा इतिवृत्त के लिए उपयोगी नामों की कवि कल्पना कर ले।। ३३०-३३१पू.।।
(तत्र कञ्चुकीनामकरणम् )
विनयन्धरबाभ्रव्यजयन्धरजयादिकम्
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कार्यं कञ्चुकिनां नाम प्रायो विश्वाससूचकम् ।। ३३२।।
कञ्चकी का नामकरण- विनयन्धर, बाभ्रव्य, जयन्धर, जय इत्यादि विश्वाससूचक नाम कञ्चुकियों का रखना चाहिए ॥ ३३२ ॥
(अथ चेटीनामकरणम् ) -
लतालङ्कारपुष्पादिवस्तूनां ललितात्मनाम् ।
नामभिर्गुणसिद्धैर्वा चेटीनां नाम कल्पयेत् ।। ३३३।।
चेटी का नामकरण - ललितात्मा वाली लता, अलङ्कार, पुष्प इत्यादि वस्तुओं के नाम से अथवा गुण की सिद्धि (निपुणता ) के अनुसार चेटियों का नामकरण करना चाहिए।।३३३॥
(अथानुजीविनामकरणम् ) -
करभः कलहंसश्चेत्यादि नामानुजीवनाम् ।
(वन्दिनामकरणम् ) -
कर्पूचण्डकाम्पिल्येत्यादिकं नाम वन्दिनाम् ।। ३३४।।
अनुजीवियों और चारणों का नामकरण- करभ कलहंस इत्यादि अनुजीवियों
का और कपूरचण्ड, काम्पिल्य इत्यादि चारणों का नाम रखना चाहिए | | ३३४ ॥
(अथ मन्त्रिनामकरणम् )
सुबुद्धिवसुभूत्यादि मन्त्रिणां नाम कल्पयेत् ।