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रसार्णवसुधाकरः
सार्वभौम (राज्य रूपी) फल प्राप्ति के लिए वत्सराज (उदयन) का रत्नावली के साथ सम्भोग उसका उदाहरण समझना चाहिए।।२६१उ.-२६३पू.।।
(अथ कामशृङ्गारः)
दुरोदरसुरापानपरदारादिकेलिजः ।।२६३।। तत्तदास्वादललितः कामशृङ्गार ईरितः ।
तदुदाहरणं प्रायो दृश्यं प्रहसनादिषु ।। २६४।।
कामशृङ्गार- जुवाड़ी, सुरापान और परस्त्री इत्यादि की क्रीडा से उत्पन्न तथा तत्तत् (जुआ इत्यादि) के आस्वाद से प्रिय शृङ्गार कामशृङ्गार कहलाता है। इसका उदाहरण प्रायेण प्रहसन इत्यादि में देख लेना चाहिए।।२६३उ.-२६४॥
(समवकाररचनायां विशेषाः)शृङ्गारत्रितयं यत्र नात्र बिन्दुप्रवेशको । मुखप्रतिमुखे सन्यी वस्तु द्वादशनाडिकम् ।।२६५।। प्रथमे कल्पयेदले नाडिका घटिकाद्वयम् । मुखादिसन्धित्रयवांश्चतुर्नाडिकवस्तुकः ।।२६६।। द्वितीयाङ्कस्तृतीयस्तु द्विनाडिकथाश्रयः । निर्विमर्शचतुस्सन्धिरेवमङ्कास्त्रयः स्मृताः ।। २६७।। वीथीप्रहसनाङ्गानि कुर्यादत्र समासतः । प्रस्तावनायाः प्रस्तावे प्रोक्तो वीथ्यङ्गविस्तरः ।। २६८।। दशप्रहसनाङ्गानि तत्प्रसङ्गे प्रचक्ष्महे ।
उदाहरणमेतस्य पयोधिमथनादिकम् ।। २६९।।
समवकार की रचना में विशेष- समवकार में यह शृङ्गार त्रय होता है। बिन्दु (नामक अर्थप्रकृति) और प्रवेशक (नामक अर्थोक्षेपक) नहीं होता। इसके प्रथम अङ्क में मुख और प्रतिमुख दो सन्धियाँ होती है जिसकी कथावस्तु बारह नाडिका वाली होती है। एक नाडिका दो घटी (घड़ी) वाली होती है। (इस प्रकार इसकी कथावस्तु चौबीस घटी वाली होती है)। इसका दूसरा अङ्क चार नाडिका अर्थात आठ घड़ी की कथावस्तु वाला होता है तथा मुख इत्यादि तीन सन्धियाँ होती हैं। तृतीय अङ्क की कथावस्तु दो नाडिका (४ घड़ी) की होती है तथा विमर्श से रहित चारों सन्धियाँ होती हैं। इस प्रकार समवकार में कुल तीन अङ्क होते हैं। यहाँ संक्षेप में वीथी और प्रहसन के अङ्गों का योजन करना चाहिए। वीथ्यङ्गों का विवेचन प्रस्तावना के निरूपण के समय विस्तारपूर्वक किया जा चुका है। प्रहसन के अङ्गों को प्रहसन के निरूपण के प्रसङ्ग में आगे किया जाएगा। पयोधिमथन इत्यादि समवकार का उदाहरण है।।२६५-२६९।।