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तृतीयो विलासः
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क्रप्राणिसमुत्पन्नः शत्रुजस्तु रणादिजः ।। २५७।। वात्यावर्षादिसम्भूतो दैवजः कपटः स्मृतः ।
उदाहरणमेतेषामावेगे लक्ष्यतां बुधैः ।।२५८।।
कपटत्रय- मोहात्मक भ्रम कपट कहलाता है। कपट तीन प्रकार का होता हैसत्त्वज, शत्रुज और दैवज। सत्वज- क्रूर प्राणि से उत्पन्न कपट सत्त्वज कहलाता है। शत्रुजयुद्ध इत्यादि से उत्पन्न कपट शत्रुज कपट कहलाता है और देवजनित- आँधी-वर्षा इत्यादि से उत्पन्न कपट दैवज कहलाता है। इनका उदाहरण आवेग के निरूपण के दिया जा चुका है, वहाँ इन्हें देख लेना चाहिए।।२५७-२५८॥
(विद्रवत्रयम् )
जीवग्राहोऽथ मोहो वा कपटाद् विद्रवः स्मृतः ।
कपटत्रयसम्भूतेरयं च त्रिविधो मतः ।। २५९
विद्रवत्रय- कपट से जीवग्राह, मोह अथवा विद्रव होता है। उपयुक्त तीन प्रकार के कपटों से उत्पन्न होने के कारण विद्रव भी तीन प्रकार का होता है- क्रूरप्राणि समुत्पन्न विद्रव, शत्रुज विद्रव और दैवज विद्रव॥२५९॥
(शृङ्गारत्रयम् )
धर्मार्थकामसम्बद्धविधा शृङ्गार ईरितः ।
शृङ्गारत्रय- धर्म, अर्थ और काम से सम्बन्धित शृङ्गार तीन प्रकार का होता हैधर्मश्रृङ्गार, अर्थशृङ्गार और कामशृङ्गार-(२६०पू.)।
(तत्र धर्मशृङ्गारः)
व्रतादिजनितः कामो धर्मशृङ्गार ईरितः ।। २६०।।
पार्वतीशिवसम्भोगस्तदुदाहरणं मतम् ।
धर्मशृङ्गार- व्रत इत्यादि से उत्पन्न शृङ्गार धर्मशृङ्गार कहलाता है। पार्वती और शिव का सम्भोग इसका उदाहरण है।।२६०उ.-२६१पू.॥
(अथार्थशृङ्गारः)
यत्र कामेन सम्बद्धैरथैरर्थानुबन्धिभिः ।।२६१।। भुज्यमानः सुखप्राप्तिरर्थशृङ्गार ईरितः । सार्वभौमफलप्राप्तिहेतुना वत्सभूपतेः ।।२६२।।
रत्नावल्या समं भोगो विज्ञेया तदुदाहृतिः ।
अर्थशृङ्गार- जहाँ काम के साथ-साथ राज्य इत्यादि अर्थ की अनुबद्धता से सम्बन्धित सम्पत्ति इत्यादि के भोग के कारण प्राप्त सुख अर्थशृङ्गार कहलाता है। जैसे
रसा..